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भागवत के आधार पर लघु-भागवतामृत में यह संख्या 25 तथा 'सात्वत तंत्र' में लगभग 41 से भी अधिक हो गई है। इस तरह मध्यकालीन वैष्णव सम्प्रदायों में भी कोई सर्वमान्य सूची गृहीत नहीं हुई है।
हिन्दी साहित्य में चौबीस अवतारों का वर्णन है। उसमें भागवत की तीनों सूचियों का समावेश किया गया है। सूरदास बारहह' रामानंद रज्जव बँजू लखनदास नाभादास आदि ने भी चौबीस अवतारों का वर्णन किया है।
इन चौबीस अवतारों में मत्स्य, वराह, कूर्म, आदि अवतार पशु हैं, हंस पक्षी है, कुछ अवतार पशु और मानव दोनों के मिश्रित रूप है जैसे नृसिंह, हयग्रीव आदि।
वैदिक परम्परा में अवतारों की संख्या में क्रमश: परिवर्तन होता रहा है। जैन तीर्थंकरों की तरह उनका व्यवस्थित रूप नहीं मिलता। इतिहासकारों ने 'भागवत' की प्रचलित चौबीस अवतारों की परम्परा को जैनों से प्रभावित माना है। श्री गौरीचन्द हीराचन्द ओझा का मन्तव्य है कि चौबीस अवतारों की यह कल्पना भी बौद्धों के चौबीस बुद्ध और जैनों के चौबीस तीर्थंकरों की कल्पना के आधार पर हुई है। 5
श्रेडर ने 'इन्ट्राडक्शन टू अहिर्बुध्न्यसंहिता' पृष्ठ 41-49 पर भागवत के अवतारों के साथ तुलना करते हुए उनमें चौबीस अवतारों का समावेश किया है। 39 विभवों के नाम इस प्रकार हैं :-(1) पद्मनाभ (2) ध्रुव (3) अनन्त (4) शक्त्यात्मन (5) मधुसूदन (6) विद्याधिदेव (7) कपिल (8) विश्वरूप (9) विहंगम (10)क्रोधात्मन (11) वाडवायक्त्र (12) धर्म (13) वागीश्वर (14) एकार्णवशायी (15) कमठेश्वर (16) वराह (17) नृसिंह (18) पीयूष-हरन (19) श्रीपति (20) कान्तात्मन (21) राहुजीत (22) कालनेमिहन (23) पारिजातहर (24) लोकनाथ (25) शान्तात्मा (26) दत्तात्रेय (27) न्यग्रोधशायी (28) एकशृंगतनु (29) वामनदेव (30) त्रिविक्रम (31) नर (32) नारायण (33) हरि (34) कृष्ण (35) परशुराम (36) राम (37) देविविध (38) कल्कि (39) पातालशयन।
-कलेक्टेड वर्क्स आफ आर० जी० भाण्डारकर, पृ० 66-67 57 लघुभागवतामृत, पृ० 70, श्लोक 32, सात्वततंत्र, द्वितीय पटल 58 सूरसागर पृ० 126, पद 378 59 अवतार चरित, सं0 1733, नागरी प्रचारिणी, सभा (हस्तलिखित प्रति) 60 न तहाँ चौबीस बप वरन।
-रामानन्द की हिन्दी रचनाएँ, नागरी प्रचारिणी, सभा पृ० 86 61 एक कहे अवतार दस, एक कहे चौबीस-रज्जब जी की बानी, पृ० 118 62 आप अवतार भये, चौबीस वपुधर-रागकल्पद्रुम, जिल्द 1, पृ० 45 63 चतुर्विश लीलावतारी-रागकल्पद्रुम, जि० 1 पृ० 519 64 चौबीस रूप लीना रुचिर 65 मध्यकालीन भारतीय संस्कृति (संस्करण 1951) पृ० 13,
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