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आदि ग्रन्थों में विस्तार से प्रकाश डाला गया है । स्वतन्त्र रूप से एक- एक तीर्थंकर पर विभिन्न आचार्यों ने संस्कृत, प्राकृत, अपभ्रंश, गूजराती, राजस्थानी, हिन्दी व अन्य प्रान्तीय भाषाओं में अनेकानेक ग्रन्थ लिखे हैं व लिखे जा रहे हैं ।
चौबीस अवतार
जैनधर्म में चौबीस तीर्थंकरों की इतनी अधिक महिमा रही है कि वैदिक और बौद्ध परम्परा ने भी उसका अनुसरण किया। वैदिक परम्परा अवतारवादी है इसलिए उसने तीर्थंकर के स्थान पर चौबीस अवतार की कल्पना की है। जब हम पुराण साहित्य का गहराई से अनुशीलन- परिशीलन करते हैं तो स्पष्ट ज्ञात होता है कि अवतारों की संख्या एक सी नहीं है । भागवत पुराण में अवतारों के तीन विवरण मिलते हैं जो अन्य पुराणों में प्राप्त होने वाली दशावतार परम्परा से किञ्चित् पृथक हैं । भागवत में एक स्थान पर भगवान के असंख्य अवतार बताए हैं। 53
दूसरे स्थान पर सोलह, बाबीस और चौबीस को प्रमुख माना है। 54 दशम स्कंध की एक सूची में बारह अवतारों के नाम गिनाए गये हैं। 55 इससे अवतारों की परम्परा का परिज्ञान होता है। उक्त सूची में आगे चलकर पाँचरात्र वासुदेव के ही पर्याय विभवों की संख्या 24 से बढ़कर 39 तक हो गई है।
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53 भागवत पुराण 1|3|26
54 भागवत पुराण 10 /2 /40
55 भागवत पुराण 10 |2/40
56 भाण्डारकर ने हमाद्रि द्वारा उद्धृत और वृहद्हारित स्मृति 10151145 में प्राप्त उन 24 विभवों का उल्लेख किया है। उन विभावों के नाम इस प्रकार हैं - ( 1 ) केशव ( 2 ) नारायण ( 3 ) माधव ( 4 ) गोविन्द ( 5 ) विष्णु ( 6 ) मधुसूदन ( 7 ) त्रिविक्रम ( 8 ) वामन (9) श्रीधर (10) हरिकेश ( 11 ) पद्मनाभ ( 12 ) दामोदर ( 13 ) संकर्षण ( 14 ) वासुदेव (15) प्रद्युम्न (16) अनिरुद्ध ( 17 ) पुरुषोत्तम ( 18 ) अधुक्षज ( 19 ) नरसिंह ( 20 ) अच्युत (21) जनार्दन ( 22 ) उपेन्द्र ( 23 ) हरि ( 24 ) श्रीकृष्ण। ये विष्णु के चौबीस अवतारों की अपेक्षा चौबीस नाम ही अधिक उचित प्रतीत होते हैं, क्योंकि अवतार और विभवों में यह अन्तर है कि अवतारों को उत्पन्न होने वाला माना है वहाँ पर विभव 'अजहंत्' स्वभाव वाले हैं। जिस प्रकार दीप से दीप प्रज्वलित होता है वैसे ही वे उत्पन्न होते हैं।
'तत्त्वत्रय' पृष्ठ 192 कै अभिमतानुसार पाँचारात्रों में पृष्ठ 26 एवं पृष्ठ 112 - 113 में उद्धृत 'विष्वक्सेन संहिता' और 'अहिर्बुध्न्य संहिता' (5, 50 - 57 ) में 39 विभवों के नाम दिए हैं।
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