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चौबीस तीर्थंकर
रहे थे, गोशालक भी उनका अनुसरण कर रहा था। उसने वहाँ एक साधु के प्रति दुर्विनीत व्यवहार किया और कुपित होकर साधु ने तेजोलेश्या का प्रहार गोशालक परकर दिया। प्राणों के भय से वह भगवान से रक्षा की प्रार्थना करने लगा। करुणा की प्रतिमूर्ति भगवान ने शीतलेश्या के प्रभाव से उस तेजोलेश्या को शान्त कर दिया। अब तो गोशालक तेजोलेश्या की विधि बताने के लिए भगवान से बार-बार अनुनय करने लगा और भगवान ने उस पर यह कृपा कर दी। वह तो दुष्ट-प्रवृत्ति का था ही। संहार साधन पाकर उसने भगवान का आश्रम त्याग दिया और तेजोलेश्या की साधना में ही लग गया।
केवलज्ञान-प्राप्ति
भगवान की यह सत् साधना अन्तत: हुई और वैशाख सुदी दशमी को ऋजुबालिका नदी के तट पर स्थित एक वन में शालवृक्ष तले जब वे गोदोहन-मुद्रा में उकडूं बैठे ध्यानलीन थे तभी उन्हें दुर्लभ केवलज्ञान की प्राप्ति हो गयी। उनका आन्तरिक जगत आलोकपूर्ण हो गया। 42 वर्षीय भगवान महावीर स्वामी के समक्ष सत्य अपने सारे आवरण छिन्न कर मौलिक रूप में प्रकट हो गया था।वे जिज्ञासाएँ अब तुष्ट हो गयी थीं, जिनके लिए वे अब तक व्यग्र थे। जीवन ओर जगत के प्रश्न अब उनके मानस में उत्तरित हो गए थे, जिनके निदान की उन्हें साध थी। अब केवली भगवान सर्वदर्शी एवं सर्वज्ञ हो गए
प्रथम धर्मदेशना
भगवान को केवलज्ञान की उत्पत्ति होते ही देवों ने पंच दिव्यों की वर्षा की और प्रभु की सेवा में उपस्थित होकर उनकी वन्दना तथा ज्ञान का महिमा-गान किया। देवताओं द्वारा भव्य समवसरण की रचना की गयी। मानवों की इस सभा में अनुपस्थिति थी, मात्र देवता ही उपस्थित थे, अत: भगवान की इस प्रथम देशना से किसी ने संयम स्वीकार नहीं किया। देवता तो भोग प्रवृत्ति के और अप्रत्याख्यानी होते हैं। त्याग-मार्ग का अनुसरण उनके लिए संभव नहीं होता। तीर्थंकर परम्परा में प्रथम देशना का इस प्रकार प्रभाव शून्य होने का यह असामान्य और प्रथम ही प्रसंग था।
देवताओं द्वारा आयोजित समवसरण के विसर्जन पर भगवान का आगमन मध्यमपावा नगरी में हुआ। यहाँ विराट और अति भव्य समवसरण रचा गया। देव-दानव व मानवों की विशाल परिषद के मध्य भगवान स्फटिक आसन पर विराजित हुए और लोकभाषा में उन्होंने धर्मदेशना दी।
उन्हीं दिनों इस नगर में एक महायज्ञ का भी आयोजन चल रहा था। आर्य सोमिल इस यज्ञ के प्रमुख अधिष्ठाता थे। देश भर के प्रख्यात | विद्वान इसमें सम्मिलित हुए थे। एक प्रकार से इस महायज्ञ और भगवान के समवसरण से यह नगरी दो संस्कृतियों,
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