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________________ भगवान अरिष्टनेमि 111 सकते है; और किसी में तो इसे छूने तक की शक्ति नहीं है। यह सुन कर कुमार ने उसे देखते ही देखते उँगली पर उठा लिया और चक्रित कर दिया। आयुधशाला के सभी कर्मचारी हड़बड़ा कर बोल उठे-रुक जाइए कुमार! रुक जाइए, अन्यथा भयंकर अनर्थ हो जायगा। और कुमार ने चक्र को यथस्थान रख दिया। अब वे आयुधशाला को धूम-धूमकर देखने लगे। तभी पांचजन्य शंख पर उनकी दृष्टि गई। उन्होंने उसे उठाकर फूंका। दिव्य शंखध्वनि से द्वारिकापुरी गूंज उठी। कृष्ण को बड़ा विस्मय हुआ। उनके अतिरिक्त कोई अन्य पांचजन्य को निनादित नहीं कर सकता था अत: उन्हें शंका हुई कि क्या कोई अन्य वासुदेव जन्म ले चुका है। लपककर वे आयुधशाला में आए और जो कुछ देखा, उससे उनके विस्मय का कोई पार नहीं रहा। कुमार अरिष्टनेमि उनके धनुष शारंग को टंकार रहे थे। श्रीकृष्ण को कुमार की अद्भुत बलशीलता का परिचय मिल गया। श्रीकृष्ण ने अरिष्टनेमि से कहा कि मैं तुम्हारे बाहुबल की परीक्षा करना चाहता हूँ। दोनों व्यायामशाला में पहुँचे। यादव कुल के अनेक जन यह कौतुक देखने को एकत्रित हो गए। श्रीकृष्ण ने अपनी भुजा फैलाई और कुमार से कहा कि इसे नीचे झुकाओं। कुमार ने क्षणमात्र में ही मृणालिनी की भाँति कृष्ण की भुजा को नमित कर दिया। यह देखकर एकत्रित जनसमुदाय गद्गद कंठ से कुमार की प्रशंसा करने लगे। अब श्रीकृष्ण का उपक्रम करने लगे। उन्होंने अपनी समस्त शक्ति का प्रयोग कर लिया, वे भुजा पर अपने दोनों हाथों से झुल गए, किन्तु अरिष्टनेमि की भुजा थी कि रंचमात्र भी झुकी नहीं। इस होड़ में पिछड़ जाने पर व्यक्त रूप से तो श्रीकृष्ण ने कुमार अरिष्टनेमि की शक्ति की प्रशंसा की, किन्तु मन ही मन कुछ क्षोभ भी हुआ। उन्होंने यह निष्कर्ष निकाला कि कुमार की इस अतुल शक्ति का कारण उनका ब्रह्मचर्य है। माता-पिता अन्य स्वजनों ने कुमार अरिष्टनेमि से पहले भी विवाह कर लेने का आग्रह कई-कई बार किया था, किन्तु वे कुमार से इस विषय में स्वीकृति नहीं ले पाए। अत: वे सब निराश थे। ऐसी स्थिति में श्रीकृष्ण ने एक नयी युक्ति की। उन्होंने अपनी रानियों से किसी प्रकार अरिष्टनेमि को मनाने के लिए कहा। श्रीकृष्ण से प्रेरित होकर रानियों ने एक मनमोहक सरस फाग रचा। अरिष्टनेमि को भी उसमें सम्मिलित किया गया। रानियों ने इस अवसर पर अनेकविध प्रयत्न किए कि कुमार के मन में कामभावना को जाग्रत कर दें और उन्हें किसी प्रकार विवाह के लिए उत्सुक करें, किन्तु इस प्रकार उन्हें सफलता नहीं मिली। तब रानियाँ बड़ी निराश हुईं और कुमार से प्रार्थना करने लगीं कि हमारे यदुकुल में तो साधारण वीर भी कई-कई विवाह करते हैं। आप वासुदेव के अनुज होकर भी अब तक अदिवाहित हैं। यह वंश की प्रतिष्ठा के योग्य नहीं है। अत: आपकों विवाह कर ही लेना चाहिए। रानियों की इस दीन प्रार्थना पर कुमार किंचित् मुस्कुरा पड़े थे, वस; रानियों ने घोषित कर दिया कि कुमार अरिष्टनेमि ने विवाह करना स्वीकार कर लिया है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003143
Book TitleChobis Tirthankar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajendramuni
PublisherUniversity of Delhi
Publication Year2002
Total Pages224
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size9 MB
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