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________________ 106 चौबीस तीर्थंकर था कि कुमार ने उसे ललकारा-'ओ कापुरुष! तुझे लज्जा नहीं आती, एक अबला पर शस्त्र उठाते हुए।' कर युवक की क्रोधाग्नि में जैसे अंगारा पड़ गया। वह भभक उठा और बोला-सावधान! हमारे पारस्परिक प्रसंग में तुम हस्तक्षेप मत करो, अन्यथा मेरी तलवार पहले तुम्हारा ही काम तमाम करेगी। यह स्त्री तो अपनी नीचता के कारण आज बच ही नहीं सकेगी। युवक तो क्रोधाभिभूत होकर आय-बाय बकने में ही लगा था और कुमार ने साहस के साथ युवक पर प्रहार कर दिया। असावधान युवक गहरी चोट खाकर तुरन्त भूलुंठित हो गया और चीत्कार करने लगा। उसे गहरे घाव लगे थे। रक्त का फव्वारा छूट गया था। युवक अपनी शक्ति का सारा गर्व भूल गया था। राजकुमार इस निश्चेष्ट पड़े युवक को देखता रहा और मन में उठने वाली गूंज को सुनता रहा जो उसे आश्चर्य में डाल रही थी-यह अपरिचिता बाला मुझसे विवाह करने कपर दृढ़प्रतिज्ञ कैसे है ? कौन है यह? सोचते-सोचते कुमार की दृष्टि उस अबला की ओर मुड़ी। अब वह आश्वस्त-सी खड़ी थी। वह कुमार के प्रति मौन धन्यवाद व्यक्त कर रही थी। संरक्षण पाकर वह आतंक-मुक्त हो गयी थी। इसी समय दुष्ट युवक को चेत आया। वह अपने गम्भीर घावों की पीड़ा के कारण कराह रहा था। उसका मुख निस्तेज हो चला था। तभी राजकुमार ने उससे प्रश्न कियाकौन हो तुम और इस सुन्दरी बाला को क्यों इस प्रकार परेशान कर रहे हो? चाहते क्या हो तुम? युवक गिड़गिड़ाकर कहने लगा तुमने इस स्त्री पर ही नहीं मुझ पर भी बड़ा ही उपकार किया है। मुझे भयंकर पाप से बचाया है। मैं बड़ा दुष्ट हूँ-मैंने बड़ा ही घोर दुष्कर्म सोचा था। तुम्हारे आ जाने से मैं क्षणमात्र को रुककर युवक ने एक जड़ी कुमार को दी और कहा कि इसका लेप मेरे घावों पर कर दो। स्वस्थ होकर मै। सारा वृत्तान्त सुना दूंगा। सहृदय कुमार ने उसकी भी सेवा की। जड़ी के प्रयोग से उसे स्वस्थ कर दिया। उसने बाद में जो घटना सुनायी उससे तथ्यों पर यो प्रकाश पड़ा यह युवती रत्ननाला जो अनिंद्य सुन्दरी थी एक विद्याधर राजा की कुमारी थी और वह युवक भी एक विद्याधर का पुत्र था। रत्नमाला की रूप- माधुरी पर वह अत्यन्त मुग्ध था। अत: वह उससे विवाह करना चाहता था। उसने अनेकों प्रयत्न किए, किन्तु सफल न हो पाया। किसी भविष्यवक्ता ने राजकुमारी को बताया था कि उसका विवाह राजकुमार अपराजित के साथ होगा। तभी से वह कुमार की कल्पना में ही सोयी रहती थी। वह भला ऐसी स्थिति में उस विद्याधर के प्रस्ताव को कैसे मान लेती? युवक ने अन्तिम और भयंकर चरण उठा लिया। छल से उसे वन में ले आया, जहाँ भय दिखाकर वह राजकुमारी को अपनी पत्नी होने के लिए विवश कर देना चाहता था। उसकी योजना थी कि इस अन्तिम प्रयास में भी यदि रत्नमाला अपराजित के साथ विवाह का विचार छोड़कर उसे पति स्वीकार नहीं करे, तो उसे जीवित ही अग्नि में झोंक दिया जाय। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003143
Book TitleChobis Tirthankar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajendramuni
PublisherUniversity of Delhi
Publication Year2002
Total Pages224
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size9 MB
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