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भगवान अरिष्टनेमि
है, तो कुमार एक पल के लिए सोचने लगे। उन्होंने सज्जनोचित मर्यादा का पालन करने का ही निश्चय किया और शरणागत की रक्षा करने का पक्ष भारी हो गया। अतः राजकुमार ने विनय के साथ उत्तर दिया- भले ही यह घोर दुष्कर्मी और अपराधी हो, किन्तु मैंने इसे अपना आश्रय दिया है। हम शरण माँगने वाले को न निराश लौटाते हैं, न शरणागत की रक्षा में कुछ आगा-पीछा सोचते हैं। हम इसे आप लोगों को नहीं सौंप सकते।
निदान क्रूद्ध भीड़ हिसा पर उतारू हो गयी। अपने दण्डनीय अपराधी को रक्षित देखना उसे कब सह्य होता ? अतः उसने रक्षक को ही समाप्त कर देने का निश्चय कर लिया। भयंकर युद्ध छिड़ गया। कुमार अपराजित के पराक्रम, शौर्य और साहस के सामने सशस्त्र सैन्यदल हतप्रभ हो गया। उनके छक्के छूट गए - राजकुमार का पराक्रम देखकर । सेनाधिकारियों ने अपने स्वामी को सूचना दी। यह जानकर कि किसी युवक ने उस अपराधी को शरण दी है और वह अकेला ही हमारे राज्य के विरुद्ध युद्ध कर रहा है-राजा क्रोधित हो गया। वह भारी सेना के साथ संघर्षस्थल पर पहुँचा। राजा ने जब कुमार के अद्भुत शस्त्र - कौशल को देखा तो आश्चर्यचकित रह गया। जब उसे ज्ञात हुआ कि यह युवक उसके मित्र राजा हरिनन्दी का पुत्र अपराजित कुमार है, तो उसने शस्त्र ही त्याग दिए । युद्ध समाप्त हो गया। अपराधी को क्षमादान दिया गया। कुमार भी परिचित होकर कि यह नरेश उनके पिता के मित्र हैं - आदर प्रगट करने लगे। राजा कुमार को अपने राजभवन में ले आया- गद्गद् कंठ से उसने कुमार के शौर्य व पराक्रम की प्रशंसा की और उनके साथ अपनी राजकुमारी कनकमाला का विवाह कर दिया।
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कुमार अपराजित का विवाह रत्नमाला के साथ भी हुआ था। इस विषय में भी एक कथा प्रचलित है जिससे कुमार का न केवल साहसीपना प्रकट होता है, अपितु कुमार के हृदय की करुणा और असहायजनों की रक्षा का भाव भी उद्भूत होता है। कुमार अपने मित्र विमल के साथ वन - विहार कर रहे थे प्राकृतिक शोभा को निरख कर उनका मन प्रफुल्लित हो रहा था तभी दूर कहीं से एक करुण पुकार सुनाई दी। नारी कंठ से निसृत वाणी हृदय को हिला देने वाली थी। कोई स्त्री आर्त्तस्वर से रक्षा के लिए सहायता माँग रही है, ऐसा आभास पाते ही दोनों मित्र स्वरागम की दिशा में तीव्र गति से बढ़ गए। एक स्थल पर घनी वनस्पति के पीछे से क्रूर पुरुष का स्वर सुनाई देने लगा। साथ ही किसी स्त्री की सिसकियों का आभास भी होने लगा। मित्र और कुमार पल भर में ही परिस्थिति का अनुमान लगाने में सफल हो गए और स्त्री की रक्षा के प्रयोजन से वे और आगे बढ़े। तभी उस स्त्री का यह स्वर आया कि मैं केवल अपराजित कुमार को ही पति रूप में वरण करूँगी तुम कितना ही प्रयत्न कर लो - चाहे मुझे प्राण ही क्यों न देने पड़े पर तुम्हारी कामना कभी पूरी नहीं हो सकती । कर्कश और क्रूर स्वर में कोई दुष्ट उसे धमकियाँ दे राह था - बोल, तू मुझे पति रूप में स्वीकार करती है या नहीं? मैं अभी तेरे टुकड़े-टुकड़े कर दूँगा। परिस्थिति की कोमलता को देखकर सिंह की भाँति लपक कर कुमार उस स्थान पर पहुँच गए। स्त्री भूमि पर पड़ी थी। लाल-लाल नेत्रों वाला एक बलिष्ठ युवक उस पर तलवार का वार करने वाला
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