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भगवान मुनिसुव्रत
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सर्वगुणों से सम्पन्न थी। ये ही रानी-राजा भगवान मुनिसुव्रत के माता-पिता थे। स्वर्ग की सुखोपभोगपूर्ण स्थिति जब समाप्त हुई, तो अपराजित विमान से मुनि सुरश्रेष्ठ केजीव ने प्रस्थान किया ओर रानी पद्मावती के गर्भ में भावी तीर्थंकर के रूप में अवस्थित हुआ। वह श्रावण शुक्ला पूर्णिमा में श्रवण नक्षत्र का शुभ योग था। उसी रात्रि में रानी 14 दिव्य स्वप्न देखकर जागृत हो गई। पति महाराजा सुमित्र को उसने जब स्वप्न का सारा वृत्तान्त सुनाया तो उन्होंने भावी फलों का रानी को आभास कराया कि वह तीर्थंकर प्रसविनी होगी। अब तो रानी को अपने प्रबल भाग्य पर गर्व होने लगा ओर वह प्रसन्नता से झूम उठी। गर्भ-काल सानन्द व्यतीत हुआ। ज्येष्ठ कृष्णा अष्टमी को श्रवण नक्षत्र ही के श्रेष्ठ योग में उसने एक तेज सम्पन्न पुत्र को जन्म दिया। देव-देवेन्द्र, नर-नरेन्द्र सभी ने भगवान का जन्मोत्सव हर्ष एवं उल्लास के साथ मनाया।
जब कुमार गर्भ में थे; माता ने मुनियों की भाँति सम्यक् रीति से व्रतों का पालन किया था। अत: पिता महाराजा सुमित्र ने कुमार का नाम रखा-मुनिसुव्रत।
गृहस्थ-जीवन
अनन्त वैभव और वात्सल्य के बीच युवराज मुनिसुव्रत का बाल्यकाल व्यतीत हुआ। नाना भाँति की क्रीड़ाएँ करते हुए वे विकसित होते रहे और क्रमश: तेजस्वी व्यक्तित्व के सुन्दर युवक के रूप में निखर आए। 20 धनुष ऊँचा उनका बलिष्ठ शरीर शोभा का पुंज था। इस सर्वथा उपयुक्त आयु में महाराज सुमित्र ने अनेक लावण्यवती एवं गुणशीला युवराशियों से भगवान का विवाह सम्पन्न किया। इनमें प्रमुख थी प्रभावती जिसने सुव्रत नाम के पुत्र को जन्म दिया।
जब कुमार मुनिसुव्रत की आयु साढ़े सात हजार वर्ष की हो गयी थी, तब महाराज सुमित्र ने संयम धारण करने का दृढ़ निश्चय कर लिया और उन्होंने राजकुमार का राज्याभिषेक कर उन्हें राज्य का समस्त उत्तरदायित्व सौंप दिया। अत्यन्त नीतिज्ञतापूर्वक शासन करते हुए महाराजा मुनिसुव्रत ने अपनी संतति की भाँति प्रजा का पालन और रक्षण किया।
दीक्षाग्रहण व केवलज्ञान
जब उनके शासन के प्रन्द्रह हजार वर्ष व्यतीत हो चुके थे, उनके मन में कुछ ऐसा अनुभव होने लगा कि भोगाफलदायी कर्म अब समाप्त हो गए हैं और उन्हें आत्म-कल्याण के मार्ग पर अग्रसर हो जाना चाहिए। तभी लोकान्तिक देवों ने भी उनसे धर्मतीर्थ स्थापन की प्रार्थनाएं की। भगवान मुनिसुव्रत ने विरक्ति भाव के साथ अपने पुत्र को समस्त वैभव और सत्ता सौंप दी तथा आप अपूर्व दान कार्य में प्रवृत्त हो गए। यह वर्षीदान था, जो वर्षपर्यन्त अति उदारता के साथ चलता रहा।
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