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________________ 20] भगवान मुनिसुव्रत (चिन्ह- कूर्म कछुआ) हे भगवान! आप मायारहित महातेजस्वी है। आपने अपनी तपस्या से महामुनियों को भी चकित कर दिया था। जैसे पति-पत्नी से मिलता है-वैसे ही आपने उत्तम व्रत के पालन द्वारा मुक्ति-सुन्दरी को प्राप्त किया हैं प्रभो! मैं भी संसार को नष्ट कर सकूँ-ऐसी शक्ति मुझे प्रदान कीजिए। भगवान मुनिसुव्रत स्वामी 20वें तीर्थंकर के रूम में अवतरित हुए हैं। इनके इस जन्म की महान उपलब्धियों का आधार भी पूर्व जन्म-जन्मान्तरों का सुसंस्कार-समुच्चय ही था। पूर्वजन्म प्राचीन काल में सुरश्रेष्ठ नाम का एक राजा चम्पा नगरी में राज्य करता था जो अपनी धार्मिक प्रवृत्ति, दानशीलता एवं पराक्रम के लिए ख्यातनामा था। सहज ही में उसने क्षेत्र के समस्त राजाओं से अपनी अधीनता स्वीकार कराली थी और इस प्रकार वह विशाल साम्राज्य की सत्ता का भोक्ता रहा। प्रसंग तब का है जब नन्दन मुनि ने उसके राज्य में प्रवेश किया था। मुनि उद्यान में विश्राम करने लगे। राजा सुरश्रेष्ठ को ज्ञात होने पर वह मुनि-दर्शन एवं वन्दन हेतु उद्यान में आया। मुनिश्री की वाणी का उस पर गहरा प्रभाव हुआ। विरक्ति का अति सशक्त भाव उसके मन में उदित हुआ और सांसारिक सम्बन्धों, विषयों एवं भौतिक पदार्थों को वह असार मानने लगा। आत्म-कल्याण के लिए दीक्षा ग्रहण करने के प्रयोजन से राजा ने तुरन्त राज्य-वैभव आदि का त्याग कर दिया और संयम स्वीकार कर लिया। अपनी तपस्याओं के परिणामस्वरूप सुरश्रेष्ठ मुनि ने तीर्थंकर नामकर्म का उपार्जन किया एवं अनशन तथा समाधि में देहत्याग कर वे अपराजित विमान में अहमिन्द्र देव बने। संक्षेप में यही भगवान मुनिसुव्रत के पूर्वभव की कथा है। जन्म-वंश मगध देश में अन्तर्गत राजगृह नगर नाम का एक राज्य था। उस समय राजगृह में महाराज सुमित्र का शासन था। उनकी धर्मपत्नी महारानी पद्मावती अतीव लावण्यवती एवं Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003143
Book TitleChobis Tirthankar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajendramuni
PublisherUniversity of Delhi
Publication Year2002
Total Pages224
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size9 MB
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