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________________ चौबीस तीर्थंकर राज्य सम्भावित विध्वंस से बच जायगा । राजा ने प्रथमतः उसे कुमारी का बाल - चापल्य ही समझा, किन्तु राजकुमारी ने जब पुरी योजना से उसे अवगत किया तो उसे कुछ विश्वास हो गया । 92 यह राजकुमारी मल्ली तो एक कारण विशेष से स्त्री रूप में उत्पन्न हुई थी, अन्यथा वह तो तीर्थंकरत्व की समस्त क्षमता से युक्त ही थी। भगवाती मल्ली ने अपने अवधिज्ञान के बल पर ज्ञात कर लिया कि ये 6 राजा और कोई नहीं उसके पूर्व भव के घनिष्ठ मित्र ही हैं, जिनके साथ उन्होंने मुनि महाबल के भव में तप के प्रसंग में माया - मिश्रित व्यवहार किया था। राजकुमारी पहले से ही इन संकट के विषय में परिचित थी। निदानार्थ उसने राजधानी में एक मोहन गृह निर्मित करवाया था, जिसके 6 कक्ष थे। इन कक्षों के ठीक मध्य में उसने एक मणिमय पीठिका बनवायी और उस पर अपनी ही पूर्ण आकार की स्वर्ण - पुत्तलिका निर्मित करवायी थी। इस प्रतिमा के मस्तक पर कमल की आकृति का किरीट था। इस किरीट को पृथक किया जा सकता था। प्रतिमा के कपाल में एक छिद्र था, जो तालू के पार होकर उदर तक चला गया था और भीतर से उदर खुला था। इस सारी संरचना के पीछे एक विशेष योजना थी, जिसका उद्देश्य मल्लीकुमारी द्वारा इन छह राजाओं के रूप में अपने पूर्वभव के मित्रों को प्रतिबोध कराने का था । मल्लीकुमारी प्रतिदिन इस स्वर्ण प्रतिमा का कमल किरीट हटाकर भोजन के समय एक ग्रास उसके उदर में डाल देती थी और किरीट पुनः यथास्थान रख देती थी। इस प्रतिमा को चारों ओर से घेरकर जो दीवार बनवाई गई थी उसमें 6 द्वार (6 कक्षों के ) इस प्रकार बने हुए थे कि एक द्वार से निकल कर आया हुआ व्यक्ति केवल प्रतिमा का ही दर्शन कर पाए, वह अन्य द्वार या उससे आए व्यक्ति को नहीं देख पाए । यह सारा उपक्रम तो मल्ली पहले ही कर चुकी थी। अब योजनानुसार राजकुमारी ने पिता से निवेदन किया कि आक्रामक नरेशों में से प्रत्येक को पृथक-पृथक रूप से यह कहलवा दीजिए कि राजकुमारी उसके साथ विवाह करने को तैयार है - वह आक्रमण न करे । बल से कार्य सिद्ध होते न देखकर भी राजा छल से काम नहीं लेने के पक्ष में था और मल्ली ने उसे बोध दिया कि यह व्यवहार छल नहीं मात्र एक कला है। निदान, ऐसा ही किया गया। सभी नरेशों को पृथक-पृथक रूप से संदेश भिजवा दिए गए । फलतः युद्ध सर्वथा टल गया। अलग-अलग समय में एक-एक राजा का स्वगात किया गया और उन्हें इस मोहन- गृह के एक-एक कक्ष में पहुँचा दिया गया। किसी भी राजा को शेष राजाओं की स्थिति के विषय में कुछ भी ज्ञात न था। उनमें से प्रत्येक स्वयं को अन्यों की अपेक्षा उत्तम भाग्यशाली समझ रहा था कि उसे ऐसी लावण्यवती पत्नी मिलेगी। उस प्रतिमा को वे सभी राजा मल्ली कुमारी समझ रहे थे। मन ही मन वे अपनी इस भावी पत्नी के सौन्दर्य की प्रशंसा कर रहे थे और अपने भाग्य पर इठला रहे थे। तभी भगवती (मल्ली कुमारी) गुप्त मार्ग से पीठिका तक पहुँची। राजा आश्चर्यचकित रह गए। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003143
Book TitleChobis Tirthankar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajendramuni
PublisherUniversity of Delhi
Publication Year2002
Total Pages224
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size9 MB
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