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भगवान मल्लिनाथ
त्यों-त्यों उसके लावण्य और आकर्षण में उत्तरोत्तर अभिवृद्धि होती जा रही थी। उसके सौन्दर्य-पुष्प की ,ख्याति-सौरभ सर्वत्र प्रसारित हो गयी। युवती हो जाने पर तो उसकी शोभा को और भी चार-चाँद लग गए। रूप-सौरभ से मुग्ध अनेक नृप-भ्रमर राजकुमारी को प्राप्त करने के लिए चंचल हो उठे थे। राजकुमारी के पास तो सौन्दर्य के साथ-साथ शील और विनय का धन भी था किन्तु पिता महाराजा कुंभ पुत्री के अद्वितीय सौन्दर्य पर दर्प किया करते थे और उनका यह अभिमान उन्हें अच्छे-अच्छे वैभवशली, पराक्रमी नरेशों को भी अपनी कन्या के योग्य नहीं मानने देता था।
सांसारिक नियमानुसार राजकुमारी के लिए मनोज्ञ और योग्य महाराजाओं की ओर से सम्बन्ध के प्रस्ताव आने लगे, किन्तु संदेशवाहक का तिरस्कार करना, प्रस्तावक नरेश को अयोग्य मानकर उसकी निन्दा करना-महाराजा कुंभ का स्वभाव ही हो गया था। साकेतपुर के नरेश प्रतिबुद्धि ने ऐसे ही सन्देश के साथ अपना दूत कुंभराजा की सेवा में भेजा। दूत ने अपने स्वामी के बल, पराक्रम, वैभव आदि का जो बखान किया तो वह मल्लीकुमारी के पिता को सहन नहीं हु2आ। साकेतपुर के राजा की ओर से की गयी इस याचना से ही वे रुष्ट हो गए थे। मेरी राजकुमारी इन्द्र के लिए भी दुर्लभ है, तुम्हारा राजा तो है ही क्या?ऐसा कहते हुए पिता दूत को लौटा दिया। उन्होंने यह भी कहा कि तुम्हारा राजा अपने को शायद बड़ा ही श्रेष्ठ मानता है-उससे कहो कि मेरी बेटी की कल्पना भी न करे। कहाँ मेरी अलौकिक रूप-सम्पन्ना मल्लीकुमारी और कहाँ वह साधारण-सा राजा। उसे चाहिए कि वह किसी साधारण राजकुमारी के लिए प्रस्ताव भेजे। स्वाभाविक ही था कि इस उत्तर से नृपति प्रतिबुद्धि कुपित हो-उसके मन में प्रतिशोध की अग्नि धधक उठे।
___ इसी प्रकार अन्य अनेक राजाओं ने भी कुमारी मल्ली के लिए सन्देश भेजे, किन्तु सबके लिए राजा के पास इसी आशय के उत्तर थे कि मेरी कन्या के साथ विवाह करने की योग्यता उन अन्य राजाओं में नहीं है, वे हीन कोटि के हैं और उचित पात्ता के अभाव में उन्हें इस प्रकार की याचना नहीं करनी चाहिए। यही नहीं राजा कुंभ ने उन राजाओं की कड़ी भर्त्सना भी की। चम्पा नगरी के भूपति के नृपति अदीनशत्रु और कम्पिल के महाराजा जितशत्रु सभी के साथ ऐसा ही अपमान जनक और तिरस्कारपूर्ण व्यवहार हुआ। परिणामत: इन नरेशों के मन का प्रतिभाव वैर-विरोध में परिणत हो गया और वे प्रतिशोध पूर्ति का उपक्रम करने लगे। ये छहों राजा संगठित होकर प्रयत्न करने लगे।
कालान्तर में इन राजाओं ने कुम्भ के राज्य (मिथिला) पर 6 विभिन्न दिशाओं से एक साथ आक्रमण कर दिया। मिथिला पर घोर संकट छा गया। राष्ट को ऐसे किसी एक भी अप्रत्याशित आक्रमण को विफल रकने की स्थिति में लाना भी कठिनतर हो जाता है-फिर यहाँ तो 6 आक्रमण एक ही साथ थे। राजा बड़ा चिन्तित और दुखित हुआ। उसे राष्ट्र- रक्षा का मार्ग नहीं दिखाई देता था। विपत्ति की इस भयंकर घड़ी में राजकुमारी मल्ली ने राजा को सहारा दिया, उसे आश्वस्त किया कि वह युद्ध को टाल देगी और इस प्रकार
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