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चौबीस तीर्थंकर
किन्तु मुनि महाबल ने कालान्तर में यह सोचा कि इस प्रकार एकसा फल सभी को मिलने के कारण मैं भी इनके समान ही हो जाऊँगा। फिर मेरा इनसे भिन्न, विशिष्ट और उच्च महत्त्व नहीं रह जायगा। इस कारण गुप्त रीति से वे अतिरिक्त साधना एवं तप भी करने लगे। जब अन्य 6 मुनि पारणा करते तो ये उस समय पुनः तपरत हो जाते। इस प्रकार छद्मरूप में तप करने के कारण स्त्रीवेद का बन्ध कर लिया। किन्तु साथ ही साथ 20 स्थानों की आराधना के फलरूप में उन्होंने तीर्थंकर नामकर्म भी अर्जित किया। सातों मुनियों ने 84 हजार वर्ष की दीर्घावधि तक संयम पर्याय का पालन किया । अन्ततः समाधिपूर्वक देह त्याग कर जयन्त नामक अनुत्तर विमान में 32 सागर आयु के अहमिन्द्र देव के रूप में उत्पन्न हुए।
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माया या कपट धर्म-कर्म में अनुचित तत्त्व है। इसी माया का आश्रय मुनि महाबल ने लिया था और उन्होंने इसका प्रायश्चित्त भी नहीं किया। अतः उनका स्त्रीवेद कर्म स्थगित नहीं हुआ। कपट - भाव से किया गया जप-तप भी मिथ्या हो जाता है। उसका परिणाम शून्य ही रह जाता है।
जन्म - वंश
जम्बूद्वीप के विदेह देश में एक नगरी थी - मिथिलापुरी । किसी समय मिथिला पुरी में महाराजा कुंभ का शासन था, जिनकी रानी प्रभावती देवी अत्यन्त शीलवती महिला थी। फाल्गुन शुक्ला चतुर्थी को अश्वनी नक्षत्र में मुनि महाबल का जीव अनुत्तर विमान से अवरोहित होकर रानी प्रभावती के गर्भ में आया। भावी महापुरुषों और तीर्थंकरों की जननी के योग्य 14 महास्वप्न देखकर माता प्रभावती अत्यन्त उल्लसित हुई। पिता महाराजा कुंभ को भी अत्यन्त हर्ष हुआ। माता को दोहद ( गर्भवती स्त्री की तीव्र इच्छा) उत्पन्न हुआ कि 'उन स्त्रियों का अहोभग्य है जो पंचवर्णीय पुष्प- शय्या पर शयन करती हैं तथा चम्पा, गुलाब आदि पुष्पों की सौरभ का आनन्द लेती हुई विचरती हैं' राजा के द्वारा रानी का यह दोहद पूर्ण किया गया।
गर्भावधि पूर्ण होने पर मृगशिर शुक्ला एकादशी को अश्विनी नक्षत्र में ही माता प्रभावती ने एक अनुपम सुन्दरी और मृदुगात्रा कन्या को जन्म दिया। ये ही 19वें तीर्थंकर थे जिन्होंने पुत्री रूप में (अपवादस्वरूप ) जन्म लिया। माता को पुष्प शैय्या का दोहद हुआ था जिसमें मालती पुष्पों की अधिकता (प्रधानता ) थी और देवताओं द्वारा दोहद पूर्ण किया गया था, अतः बालिका का नाम 'मल्ली' रखा गया।
रूप- ख्याति
अभीजात कन्या जन्म से ही अत्यन्त रूपवती थी । उसका अंग प्रत्यग शेभा का जैसे अमित कोष था । सर्वगुण सम्पन्ना राजकुमारी मल्ली ज्यों-ज्यों आयु प्राप्त करती जा रही थी,
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