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चौबीस तीर्थंकर
विशाल समवसरण रचा गया। प्रभु की प्रथम धर्मदेशना से लाभान्वित होने के लिए देव- मनुजों का ठाठ लग गया। भगवान की अमोघवाणी से असंख्य प्राणी उद्बोधित हुए और अनेक ने संयम स्वीकार कर लिया, जो आत्मबल में इतने उत्कृष्ट ने थे, वे भी प्रेरित हुए और उन्होंने धर्माराधना आरंभ की। भगवान अरहनाथ ने चतुर्विध धर्मसंघ का प्रवर्तन किया और भाव तीर्थंकर व भाव अरिहन्त' कहलाए।
परिनिर्वाण
अज्ञानी जनों को धर्म का बोध कराते हुए भगवान ने भूमण्डल पर सतत विहार किया और असंख्य नर-नारियों को आत्म-कल्याण के मार्ग पर आरूढ़ किया। इस प्रकार 84 हजार वर्ष का आयुष्य पूर्ण कर लेने पर उन्हें अपना निर्वाण - समय समीप अनुभव हुआ । भगवान ने एक हजार अन्य मुनियों सहित सम्मेत शिखर पर अनशनारंभ किया । अन्ततः शैलेशी दशा प्राप्त कर भगवान ने 4 अघातिकर्मों का सर्वथा क्षय कर मार्गशीर्ष शुक्ला दशमी को रेवती नक्षत्र में निवार्ण पद का लाभ किया। इस प्रकार भगवान अरहनाथ सिद्ध, बुद्ध और मुक्त हो गए। वे निरंजन, निराकार, सिद्ध बन गए ।
धर्म परिवार
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गणधर
केवली
मनः पर्यवज्ञानी
अवधिज्ञानी
चौदह पूर्वधारी वैक्रियलब्धिकारी
वादी
साधु
साध्वी
श्रावक
श्राविका
1 भाव अरिहंत निम्नलिखित 18 आत्मिक दोषों से मुक्त होते हैं
1. ज्ञानावरण कर्मजन्य अज्ञान दोष- 2. दर्शनावरण कर्मजन्य निद्रा दोष - 3. मोहकर्मजन्य मिथ्यात्व दोष - 4. अविरति दोष - 5. राग - 6. द्वेष - 7. हास्य-8. रति-9 अरति खेद - 10. भय - 11. शोक - चिंता - 12. दुगुन्छा-13. काम - 14.18. दानान्तराय आदि 5 अंतराय दोष |
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2,800
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