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चौबीस तीर्थंकर
ने 5 दिव्यों का वर्षण किया और दान की महिमा प्रकट की। पारणा के पश्चात् प्रभु ने जनपद में विहार किया।
अपने साधक जीवन में भगवान ने कठोर तप किए। छद्मस्थचर्या में वे 2 मास तक अनेक परीषहों को समभाव के साथ सहन करते हुए विचरण करते रहे और लौटकर अपने दीक्षा-स्थल प्रकांचन उद्यान में आए। यहाँ दापिर्ण वृक्ष के नीचे वे ध्यान में लीन हो गए। शुक्लध्यान में लगे भगवान ने क्षपक श्रेणी में पहुँचकर ज्ञानावरणादि घातिककर्मों का क्षय कर लिया। यह शुभ दिवस था पौष शुक्ला पूर्णिमा का, जब भगवान धर्मनाथ स्वामी ने पुष्य नक्षत्र में ही केवलज्ञान- केवलदर्शन प्राप्त कर लिया। अब केवली प्रभु धर्मनाथ अरिहन्त बन गए थे।
प्रथम देशना
__भगवान के केवलज्ञान प्राप्त कर लेने से जगत् भर में प्रसन्नता का आलोक व्याप्त हो गया। देव व मनुष्यों के विशाल समुदाय को भगवान ने धर्मदेशना से प्रबुद्ध किया। अपनी इस प्रथम देशना में भगवान ने आन्तरिक विकार- शत्रुओं से होने वाली हानियों से मनुष्यों को सचेत किया और प्रेरित किया कि जागतिक शत्रुओं से द्वन्द्व छोड़कर इन भीतरी शत्रओं से संघर्ष करो। इन्हें परास्त करने पर ही सच्चे सुख और शान्ति का लाभ होगा। सांसारिक विषयों के अधीन रहकर मनुष्यों को अपने आत्मा की हानि नहीं करनी चाहिए। मानव अज्ञानवश भौतिक पदार्थों की शोध में लगा रहता है, जो वास्तव में नश्वर है और दुःख के कारण है। मानव-जीवन इन आसक्तियों के लिए नहीं है। इनसे विरक्त होकर सभी को आत्म-कल्याण के मार्ग का अनुसरण करना चाहिए, जो परमानन्ददायक है।
प्रभु की मर्मस्पर्शिनी वाणी से हजारों नर-नारियों की सोयी आत्माएँ सजग हो गयीं और वे भाव तीर्थंकर कहलाए।
प्रभावशीलता
केवली प्रभु ने लगभग ढाई लाख वर्षों की सुदीर्घ अवधि सतत् विचरणशील रह कर व्यतीत की और असंख्य नर-नारियों को उद्बोधित कर उन्हें आत्म-कल्याण के मार्ग पर लगाया। भगवान के इस व्यापक अभियान का एक स्मरणीय अंश पुरुषसिंह वासुदेव के उद्धार से संबंधित है।
भगवान विचरण करते-करते एक समय अश्वपुर पहुंचे और वहाँ के उद्यान में विश्राम करने लगे। तत्कालीन वासुदेव पुरुषसिंह इस राज्य का स्वामी था। इस समय का बलदेव सुदर्शन था। उद्यान कर्मचारी ने जब भगवान के आगमन का शुभ सन्देश वासुदेव पुरुषसिंह को दिया, तो वह अत्यन्त हर्षित हुआ। आद्र भाव के साथ उसने सिंहासन से उठकर वहीं से प्रभु को नमन किया और सन्देश वाहक को पुरस्कृत किया। पुरुषसिंह अपने
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