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________________ भगवान धर्मनाथ यथासमय गर्भावधि समाप्त हुई और माघ शुक्ला तृतीय को पुष्य नक्षत्र की मांगलिक घड़ी में माता ने एक तेजस्वी पुत्र को जन्म दिया। राजपरिवार और राज्य की समस्त प्रजा ने यहाँ तक कि देवताओं ने भी हर्षोल्लास के साथ कुमार का जन्मोत्सव मनाया। जन्म के बारहवें दिन नामकरण संस्कार सम्पन्न हुआ । कुमार जब गर्भ में थे तो मा सुव्रता रानी के मन में उत्तम कोटि की धर्म साधना का दोहद हुआ था । इस कारण पिता ने कुमार का सर्वोपयुक्त नाम रखा-धर्मनाथ। गृहस्थ जीवन अत्यन्त सुखद और वैभव के वातावरण में कुमार का बाल्य - जीवन देवकुमारों के साथ क्रीड़ा करते हुए व्यतीत हुआ। जीवन की यात्रा करते-करते वे जब यौवन की दहलीज पर पहुँचे, तब तक कुमार का भव्य व्यक्तित्व अनेक गुणों से सम्पन्न हो गया था। उनकी देह 45 धनुष ऊँची और अंग-प्रत्यंग कान्तिमय सौन्दर्य से विभुषित हो उठा था। भोग कर्मों और माता-पिता का आदेश- पालन करने के लिए युवराज धर्मनाथ ने विवाह किया और सुखी विवाहित जीवन भी व्यतीत किया । 71 जब भगवान (कुमार) धर्मनाथ की आयु ढाई लाख की हुई, तो पिता महाराजा भानु ने उनका राज्याभिषेक कर दिया। शासनारूढ़ होकर महाराजा धर्मनाथ ने न्यायपूर्वक और वात्सल्य भाव से प्रजा का पालन और रक्षण किया। 5 लाख वर्ष तक इस प्रकार राज्य कर चुकने पर उनके भोगकर्म अशेष हो गए। ऐसी स्थिति में उनके मन में विरक्ति का अंकुरण भी स्वाभाविक ही था। उन्हें अपने जीवन ओर जगत् के प्राणियों का मंगल करने की प्रेरणा हुई। उनके मन में धर्मतीर्थ - प्रवर्तन की उत्कट कामना जागी । दीक्षग्रहण व केवलज्ञान ब्रह्मलोक से लोकांतिक देवों का आगमन हुआ और उन्होंने भगवान से तीर्थ स्थापना की प्रार्थना की। इससे महाराजा धर्मनाथ का अपनी उचित पात्रता और उपयुक्त समय आ का भाव और भी पुष्ट हो गया। उन्होंने दीक्षा ग्रहण के अपने संकल्प को अब व्यक्त कर दिया और वे वर्षीदान में प्रवृत्त हो गए। वर्ष- पर्यन्त उदारता के साथ उन्होंने दान - कर्म सम्पन्न किया। - Jain Education International इसके पश्चात् भगवान का निष्क्रमणोत्सव आयोजित हुआ। स्वयं इन्द्र तथा अन्य देवतागण इस आयोजन के लिए उपस्थित हुए । महाराज धर्मनाथ का दीक्षाभिषेक हुआ और तब उन्होंने गृह त्याग कर निष्क्रमण किया। नगर के बाहर प्रकांचन उद्यान था। भगवान शिविकारूढ़ होकर राजभवन से उस उद्यान में पहुँचे। वह माघ शुक्ला त्रयोदशी का पवित्र दिन था, जब भगवान ने पुष्य नक्षत्र में, बेले की तपस्या में दीक्षा ग्रहण करली। अगले दिन सोमनस नगर के नरेश महाराजा धर्मसिंह के यहाँ परमान्न से प्रभु का पारणा हुआ। देवताओं For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003143
Book TitleChobis Tirthankar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajendramuni
PublisherUniversity of Delhi
Publication Year2002
Total Pages224
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size9 MB
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