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भगवान विमलनाथ
इधर बलि ने भी तपस्याएँ कीं। फलत: दोनों को स्वर्ग की प्राप्ति हुई और अवधि पूर्ण होने पर तुम्हारे रूप में धनमित्र का और मेरक के रूप में बलि का जीव इस लोक में आया। यहाँ तुम्हारे रूप में धनमित्र के जीव ने बलि से प्रतिशोध लेकर अपना संकल्प पूरा किया
इस स्पष्टीकरण के पश्चात् भगवान ने समता, शान्ति और क्षमा का उपदेश दिया। प्रभु की अमोघ वाणी से प्रभावित होकर वासुदेव ने वैमनस्य की मानसिक ग्रन्थि को खोल दिया। उसका मन उज्ज्वल भावों से ओत-प्रोत हो गया और उसने सम्यक्त्व स्वीकार कर लिया। वासुदेव के भ्राता बलदेव भद्र ने श्रावक धर्म स्वीकार किया।
परिनिर्वाण
व्यापक रूप से मानव-कल्याण के शुभ कर्म में व्यस्त रहते हुए जब भगवान को अपना अन्तिम समय समीप ही अनुभव होने लगा, तो उन्होंने सम्मेत शिखर पर पधार कर एक माह का अनशन आरम्भ कर दिया और शेष 4 अघाति-कर्मों का विनाश करने में सफल हो गए। तब भगवान सिद्ध, बुद्ध और मुक्त हो गए, उन्हें निर्वाण पद प्राप्त हो गया। वह आषाढ़ कृष्णा सप्तमी का दिन और पुष्य नक्षत्र का शुभ योग था। भगवान ने 60 लाख वर्ष का आयुष्य भोगा था।
धर्म परिवार
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गणधर केवली मन:पर्यवज्ञानी अवधिज्ञानी चौदह पूर्वधारी वैक्रियलब्धिकारी वादी साधु साध्वी श्रावक श्राविका
5,500 5,500
1,100 4,800 9,000
3,200 68,000 1,00,800 2,08,000 4,24,000
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