________________
भगवान विमलनाथ
गृहस्थ-जीवन
इन्द्र के आदेश से देवांगनाओं ने कुमार विमलनाथ का लालन-पालन किया। मधुर बाल्यावस्था की इतिश्री के साथ ही तेजयुक्त यौवन में जब युवराज ने प्रवेश किया तो वे अत्यन्त पराक्रमशील व्यक्तित्व के धनी बन गए। उनमें 1008 गुण विद्यमान थे। सांसारिक भोगों के प्रति अरुचि होते हुए भी माता-पिता के आदेश का निर्वाह करते हुए कुमार ने स्वीकृति दी और उनका विवाह योग्य राजकन्याओं के साथ सम्पन्न हुआ। अब वे दाम्पत्य-जीवन व्यतीत करने लगे।
जब कुमार की वय 15 लाख वर्ष की हुई, तो पिता ने उन्हें सिंहासनारूढ़ कर दिया। नृप विमलनाथ ने शासक के रूप में भी निपुणता औरसुयोग्यता का परिचय दिया। वे सुचारू रूप से शासन-व्यवस्था एवं प्रजा-पालन करते रहे।
दीक्षा-केवलज्ञान
30 लाख वर्षों तक उन्होंने राज्याधिकार का उपभोग किया था कि एक दिन उनके मन में सोयी हुई विरक्ति जागृत हो उठी। लोकान्तिक देवों ने भी उनसे धर्मतीर्थ प्रवर्तन की प्रार्थना की, जिससे प्रभु को विश्वास हो गया कि दीक्षार्थ उपयुक्त समय अब आ ही गया है। अत: संयम ग्रहण का संकल्प और सशक्त हो गया। उन्होंने उत्तराधिकारी को शासन-भार सौंपकर निवृत्ति ग्रहण करली और वर्षीदान आरम्भ किया। उदारतापूर्वक वे वर्ष भर तक दान देते रहे।
माघ शुक्ला चतुर्थी को उत्तराभाद्रपद नक्षत्र में विरक्त विमलनाथ गृहत्याग कर 1,000 राजाओं के साथ सहस्राभ्रवन में दीक्षा ग्रहण करने को पहुँचे। षष्ठभक्त की तपस्या करके वे दीक्षित हो गए। आगामी दिवस धान्यकूटपुर नरेश महाराजा जय के यहाँ परमान्न से प्रभु का प्रथम पारणा हुआ।
दृढ़ संयम का पालन करते हुए भगवान ग्रामानुग्राम विचरते रहे। अनेक प्रकार के परीषहों को समतापूर्वक सहन किया, निस्पृह बने रहे, अभिग्रह धारण करते रहे-और इस प्रकार 2 मास की साधना अवधि भगवान ने पूर्ण कर ली। तब वे कपिलपुर के उद्यान में पुन: पहुँच गए। जहाँ जम्बू वृक्ष तले जाकर वे क्षपक श्रेणी में आरूढ़ हुए और पौष शुक्ला षष्ठी को 4 घातिक कर्मों का क्षय कर भगवान ने बेले की तपस्या से केवलज्ञान- केवलदर्शन प्राप्त कर लिया।
प्रथम देशना
प्रभु विमलनाथ के केवली बन जाने पर सर्वत्र हर्ष ही हर्ष व्याप्त हो गया। महोत्सव मनाया गया जिसमें देवतागण भी सम्मिलित हुए। देवताओं ने समवसरण की रचना की और
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org