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भगवान शीतलनाथ
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यथासमय गर्भकाल की सम्पूर्ति पर महारानी ने एक अति तेजस्वी पुत्र रत्न को जन्म दिया। सारे जगत् में अपूर्व शान्ति का प्रसार हो गया। राज्यभर ने हर्षोल्लास के साथ कुमार का जन्मोत्सव मनाया। विगत दीर्घकाल से महाराज दृढ़रथ तप्त रोग से पीड़ित थे। पुत्र-जन्म के शुभ परिणामस्वरूप उनका यह रोग सर्वथा शान्त हो गया। जैन इतिहास के पन्नों पर यह प्रसंग इस प्रकार भी वर्णित है कि महाराजा दृढ़रथ अतिशय पीड़ादायक दाह-जवर से ग्रस्त थे। गर्मकाल में महारानी नन्दा देवी के सुकोमल करके स्पर्श मात्र से महाराज की व्याधि शान्त हो गयी और उन्हें अपार शीतलता का अनुभव होने लगा। अत: नवजात बालक का नाम शीतलनाथ रखा गया।
गृहस्थ-जीवन
युवराज शीतलनाथ अपरिमित वैभव और सुख-सुविधा के वातावरण में पोषित होने लगे। आयु के साथ-साथ उनका बल-बिक़म और विवेक सुविकसित होने लगा। सामान्यजनों की भाँति ही दायित्वपूर्ति के भाव से उन्होंने ग्रहस्थाश्रम के बन्धनों को स्वीकार किया। पिता महाराज दृढ़रथ ने योग्य सुन्दरी नृप-कन्याओं के साथ कुमार का पाणिग्रहण कराया। दाम्पत्य-जीवन जीते हुए भी वे अनासक्त और निर्लिप्त बने रहे। दायित्वपूर्ति की भावना से ही कुमार शीतलनाथ ने पिता के आदेश को पालन करते हुए राज्यासन भी ग्रहण किया। नृपति बन कर उन्होंने अत्यन्त विवेक के साथ नि:स्वार्थ भाव से प्रजापालन का कार्य किया। 50 हजार पूर्व तक महाराज शीतलनाथ ने शासन का संचालन किया और तब भोगावली कर्म के पूर्ण हो जाने पर महाराज ने संयम धारण करने की भावना व्यक्त की। इसी समय लोकान्तिक देवों ने भी भगवान से धर्मतीर्थ के प्रवर्तन की प्रार्थना की।
दीक्षा-ग्रहण व केवलज्ञान
अब महाराजा शीतलनाथ ने मुक्त-हस्त से दान दिया। वर्षीदान सम्पन्न होने पर दीक्षार्थ वे सहस्राभ्रवन में पहुँचे। कहा जाता है कि चन्द्रप्रभा पालकी में आरूढ़ होकर वे राजभवन से गए थे, जिसे एक ओर से मनुष्यों ने और और दूसरी ओर से देवताओं ने उठाया था। अब अपार वैभव उनके लिए तृणवत् था। उन्होंने स्वयं ही अपने मूल्यवान वस्त्राभूषणों को उतारा। भौतिक सम्पदाओं का त्याग कर, पंचमुष्टि लोचकर उन्होंने दीक्षा ग्रहण करली-संसार त्याग कर वे मुनि बन गए। तब माघ कृष्णा द्वादशी के दिन पूर्वाषाढ़ा नक्षत्र का शुभ योग था।
भगवान शीतलनाथ स्वामी मति- श्रुति अवधिज्ञानत्रय से सम्पन्न तो पहले से ही थे। दीक्षा ग्रहण के तुरन्त पश्चात ही उसे उन्हें मन:पर्यवज्ञान का लाभ भी हो गया। इस ज्ञान ने उन्हें वह अद्भुत शक्ति प्रदान की थी कि जिससे वे प्राणियों के मनोभावों को हस्तामलकवत् स्पष्टता के साथ समझ जाते थे। दीक्षा के आगामी दिवस प्रभु का पारणा
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