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भगवान सुविधिनाथ
(चिन्ह-मकर)
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भगवान सुविधिनाथ स्वामी नौवें तीर्थंकर हैं। प्रभु का दूसरा नाम (विशेषत: गृहस्थ जीवन में) पुष्पदन्त भी था, किन्तु आध्यात्म-क्षेत्र में वे 'सुविधिनाथ' नाम से ही प्रसिद्ध हैं।
पूर्व जन्म
पूर्व जन्म में वे पुष्कलावती विजय की पुण्डरीकिणी नगरी के नरेश महाराजा महापद्म थे। महाराज न्याय-बुद्धिपूर्ण शासनकर्ता के रूप में भी विख्यात थे और धर्माचरण के लिए भी। स्वेच्छापूर्वक नरेश ने सत्ता त्याग कर मुनि जगन्नन्द के आश्रय में दीक्षा ग्रहण कर ली थी और शेष जीवन उन्होंने साधना में व्यतीत किया। तप-साधना की उच्चता के आधार पर उन्होंने तीर्थंकर नामकर्म अर्जित किया था और देह-त्याग कर वे वैजयन्त विमान में अहमिन्द्र देव बने।
जन्म-वंश
किसी समय काकन्दी नगर नामक राज्य में महाराज सुग्रीव व शासन था इनकी धर्मपरायणा रानी का नाम रामादेवी था। ये ही भगवान सुविधिनाथ स्वामी के माता-पिता थे। फाल्गुन कृष्णा नवमी को मूल नक्षत्र में 9वें देवलोक से च्यवित होकर महापद्म का जीव माता रामादेवी के गर्भ में आया था। तीर्थंकरों की माता की भाँति ही रानी रामादेवी ने भी 14 दिव्य स्वप्नों का दर्शन किया था। स्वप्नशास्त्र की मान्यतानुसार शुभ परिणामों की पूर्व निर्धारणा से राजा-रानी अतीव प्रसन्न हुए। गर्भकाल में माता सर्वविधि सकुशल रही। अवधि समाप्ति पर रानी ने एक तेजस्वी पुत्र को जन्म दिया। वह मृगशिर कृष्ण पंचमी के मूल नक्षत्र की अति शुभ घड़ी थी। राजपरिवार, प्रजाजन एवं प्रफुल्लित देवताओं ने उत्साह एवं प्रसन्नता के साथ प्रभु का जन्मोत्सव मनाया। सर्वत्र ही दिव्य आलोक प्रसरित हो गया था। पिता महाराज सुग्रीव ने सोचा कि बालक जब तक गर्भ में रहा, रानी रामादेवी सर्वविधि कुशल रही हैं, अत: बालक का नाम सुविधिनाथ रखा जाना चाहिए। साथ ही गर्भकाल में माता को पुष्प का दोहद उत्पन्न हुआ था अत: बालक का नाम पुष्पदन्त भी रखा गया। पर्याप्त काल तक ये दोनों नाम प्रभु के लिए प्रचलित रहे।
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