________________
भगवान चन्द्रप्रभ
धर्म परिवार
गणधर केवली मन:पर्यवज्ञानी अवधिज्ञानी चौदह पूर्वधारी वैक्रियलब्धिकारी वादी साधु साध्वी श्रावक श्राविका
93 10,000 8,000 8,000 2,000 14,000
7,600 2,50,000 3,80,000 2,50,000 4,91,000
बीस स्थान-तीर्थंकर रूप में जन्म लेने से पहले तीर्थंकरों की आत्मा पूर्व जन्मों में अनेक प्रकार के तप आदि का अनुष्ठान कर तीर्थंकर नाम कर्म का उपार्जन करती है। वह बीस स्थानों में से किसी भी स्थान की उत्कृष्ट आराधना कर तीर्थंकर नामकर्म बाँधती है। वे बीस स्थान इस प्रकार हैं
1. अरिहंत की भक्ति 11. विधिपूर्वक षडावश्यक करना 2. सिद्ध की भक्ति 12. शील एवं व्रत का निर्दोष पालन 3. प्रवचन की भक्ति 13. उत्कट वैराग्य भावना 4. गुरु की भक्ति
14. तप व त्याग की उत्कृष्टता 5. स्थवितर की भक्ति 15. चतुर्विध संघ को समाधि उत्पन्न
करना 6. बहुश्रुत (ज्ञानी) की भक्ति 16. मुनियों की वैयावृत्ति 7. तपस्वी की भक्ति 17. अपूर्व ज्ञान का अभ्यास 8. ज्ञान में निरन्तर उपयोग 18. वीतराग वचनों पर दृढ़ श्रद्धा
करना 9. सम्यक्त्व का निर्दोष 19. सुपात्र दान
आराधना करना 10. गुणवानों का विनय करना 20. जिन प्रवचन की प्रभावना
-ज्ञातासूत्र 8
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org