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________________ सम्यक्त्व १. स्थैर्यः-अपने चित्त को स्वीकृत लक्ष्य में स्थिर रखना, इधर-उधर मन को भटकने नहीं देना। २. प्रभावना:-जिस तत्त्व को स्वीकार किया है वह ज्यादा से ज्यादा लोगों तक पहुंचे, सत्य धर्म की प्रभावना हो ऐसा प्रयत्न करना। ३. भक्तिः -देव, गुरु और धर्म के प्रति मन को भक्तिमय बनाए रखना। ४. कौशलः-तत्त्वज्ञान के अर्जन में तत्पर रहना । वीतराग वाणी में निष्णात बनने का प्रयत्न करना । ५. तीर्थ सेवा:-धर्म संघ की वृद्धि के लिए सतत प्रयत्नशील रहना और श्रद्धा में कमजोर व्यक्तियों को मजबूत बनाना । इनको सम्यक्त्व के पांच भूषण भी कहा गया है। जैसे शरीर वस्त्रों व अलंकरणों से सुशोभित होता है वैसे ही सम्यक्त्व इन पांच गुणों से विभूषित होती है। विमल-सभ्यक्त्व प्राप्ति से क्या-क्या लाभ है ? मुनि-सबसे बड़ा लाभ तो यह है कि सम्यक्त्व जिसे प्राप्त है उसे मुक्ति का आरक्षण प्राप्त हो जाता है, अनिश्चितता की स्थिति समाप्त हो जाती है। निश्चित अवधि के बाद वह व्यक्ति परमपद निर्वाण को पा लेता है । कषाय मन्द होने से सम्यक्त्वी का जीवन शांत और सुखी होता है । अनाग्रही होने के कारण उसमें ग्राहक बुद्धि का विकास हो जाता है। बाहर से दरिद्र होने पर भी सम्यक्त्वी अपने को दीन-हीन महसूस नहीं करता। दृष्टि सम्यग होते ही वह दश प्रकार के मिथ्यातत्त्वों से अपने को बचा लेता है। कमल-दस मिथ्यातत्त्व कौन से है ! १. अधर्म को धर्म समझना २. धर्म को अधर्म समझना ३. कुमार्ग को मार्ग समझना ४. मार्ग को कुमार्ग समझना ५. अजीव को जीव समझना ६. जीव को अजीव समझना ७. असाधु को साधु समझना ८. साधु को असाधु समझना ६. अमुक्त को मुक्त समझना १०. मुक्त को अमुक्त समझना । विमल-क्या कारण है कि जीव को सम्यक्त्व की प्राप्ति नहीं होती है । मुनि-दुनिया के बहुत सारे लोग तो ऐसे हैं जिनको अपने स्वरूप के बारे में कोई जिज्ञासा भी नहीं है, वे सम्यक्त्व की महत्ता को समझते ही Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003142
Book TitleBat Bat me Bodh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaymuni Shastri
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1995
Total Pages178
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Education
File Size8 MB
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