SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 59
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ४६ बात-बात में बोध लम्बे समय तक अपने भीतर नहीं पालता। जो वर्ष भर तक या संवत्सरी महापर्व के दिन भी किसी प्रकार की ग्रन्थि को बनाये रखता है वह व्यक्ति सम्यक्त्व को पाकर भी खो देता है। इसीलिये जैन परम्परा में बल दिया जाता है कि व्यक्ति संवत्सरी के दिन तो अवश्य ही सरलतापूर्वक सभी से क्षमायाचना कर ले और भीतरी ग्रन्थियों से मुक्त हो जाये। कमल-सभ्यक्त्व के कितने प्रकार होते हैं मुनिराज ? मुनि-प्राप्ति के उपायों के आधार पर इसके दो प्रकार बताये गये हैं। १. निसगजः-बिना बाहरी निमित्त के प्राप्त होने वाली सम्यक्त्व। कर्मों का हल्कापन होने से यह प्राप्त होती है। बरसाती नदी में बहता-बहता पत्थर जिस तरह गोल हो जाता है उसी तरह जीवन की लम्बी यात्रा में कदाचित यह स्थिति व्यक्ति को प्राप्त हो जाती है, वह सम्यक्त्वी बन जाता है । २. निमित्तजः-बाहरी निमित्त से प्राप्त होने वाली सम्यक्त्व । यह सम्यक्त्व स्वाध्याय, शास्त्र श्रवण व गुरु के वचनों का निमित्त पाकर प्राप्त होती है। विमल-आपके कथन से लगता है सम्यक्त्व की प्राप्ति महान् सौभाग्य का उदय है, किन्तु यह भी तो सम्भव है कि ऐसे सौभाग्य को पाकर भी व्यक्ति उससे वंचित रह जाए। वे कौन से भटकाव हैं जिनसे सम्यक्त्वी व्यक्ति को सदा सावधान रहना चाहिए? मुनि-पांच दोष हैं जिनसे सम्यक्त्वी व्यक्ति को सदा बचकर रहना चाहिए। १. शंका-स्वीकृत तत्त्व के प्रति मन में संदेह होना। २. कांक्षा-मिथ्यामत को ग्रहण करने की अभिलाषा। ३. विचिकित्सा-धर्म के फल में संशय करना । ४. परपाषण्ड प्रशंसा-धर्म से प्रतिकूल चलने वाले व्यक्तियों की प्रशंसा करना। ५. परपाषण्ड परिचय-धर्म से प्रतिकूलगामी व्यक्तियों के नजदीक जाना, उनसे परिचय करना। बच्चों! ये पांच दोष ही सम्यक्त्वी के लिए भटकाव है। कमल-मुनिवर ! भटकाव से बचने व निधि को सुरक्षित रखने के लिए एक सम्यक्त्वी व्यक्ति को किन-किन बातों का ध्यान रखना जरूरी है ? मुनि-सम्यक्स्वी को इस दृष्टि से पांच बातों का विशेष ध्यान रखना चाहिए Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003142
Book TitleBat Bat me Bodh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaymuni Shastri
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1995
Total Pages178
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Education
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy