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बात-बात में बोध
नहीं । कई जो इसके महत्त्व को समझते हैं वे तीव्र कषाय और आग्रहबुद्धि के कारण सम्यक्त्व से वंचित रह जाते हैं ।
कमल—– सम्यक्त्व का वर्णन सुनकर इसकी प्राप्ति के लिए हमारे मन में आकर्षण पैदा हुआ है ।
विमल - मुनिवर ! आप हम दोनों को सम्यक्त्व प्रदान करावें ।
मुनि - जब तुम कुछ दिनों के बाद गुरुदेव के दर्शन करने जा ही रहे हो तो उनके श्रीमुख से ही इसे ग्रहण करना अच्छा रहेगा ।
कमल --- सम्यक्त्व ग्रहण करते समय क्या कुछ भेंट भी चढ़ानी होगी उनके चरणों में !
मुनि-भेंट तो अपनी आस्था की करनी होगी। वैसे कुछ नियम सम्यक्त्व स्वीकृति के साथ दिलाए जाते हैं, जैसे- स्वीकृत आस्था पर दृढ़ रहना, अण्डा, मांस व शराब का सेवन न करना, आत्म हत्या या किसी दूसरे की हत्या न करना, वृक्षों को नहीं काटना, संवत्सरी के दिन व्रत रखना आदि ।
विमल - आप की अत्यन्त कृपा से हमें सम्यक्त्व को समझने का मौका मिला।
मां कई बार कहा करती थी, अरे ! तुम लोग संतों के दर्शन करने जाया करो | किन्तु इतना उत्साह नहीं था । आज पहली बार महसूस हुआ कि संतों के पास बैठने में बहुत लाभ हैं । सम्यक्त्व की व्याख्या सुनकर हमारी जिज्ञासा और बढ़ गई है। षड्द्रव्य, नव तत्त्व, देव, गुरु और धर्म के बारे में भी हम आपसे जानना चाहते हैं, पर अभी नहीं । इसके लिए हम दूसरी बार आपसे समय लेंगे अभी हमने आपका बहुत समय ले लिया, क्षमा करें ।
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सुनि- मुझे तो तुम जैसे जिज्ञासुओं को समय देने में खुशी ही होती है। मैं चाहता हूँ तुम लोग इसी तरह तत्त्व को समझते रहो और धर्म के मर्म को हृदयङ्गम कर जीवन में उतारने का प्रयास करो ।
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