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________________ जैन धर्म और विज्ञान २६ " मेरा पति मुझसे हरदम झगड़ा करता रहता है, बड़ा व्यभिचारी है, उससे मुझे बड़ी घृणा है आदि-आदि ।” पति को बुलाकर भी पील ने सारी स्थिति की जानकारी की, पर आश्चर्य ! पति को पत्नी से कोई शिकायत नहीं । पील ने उसकी पत्नी को हिप्टोनाइज करके पूछा, तब पता चला कि विवाह से पूर्व उसका किसी अन्य व्यक्ति के साथ प्रेम-सम्बन्ध था | पील ने उसकी मनोग्रन्थि को जान लिया कि वह अपने अपराध को पति पर आरोपित कर रही है । वह स्त्री जब सहज अवस्था में आयी, पील ने कहा- तुम अपने अपराध को पति के सामने सरलता से प्रकट कर दो और पति पर किसी प्रकार का गलत आरोप मत लगाओ । एक बार तो उसका मन सकुचाया । फिर हिम्मत करके उसने वैसा ही किया । धीरे-धीरे वह स्वस्थ होने लगी । मनोवैज्ञानिक बीमारी का निदान जिस पद्धति से करते हैं, वह प्रायश्चित्त का ही दूसरा प्रकार है। इसके द्वारा आत्मशुद्धि तो होती ही है, मानसिक व शारीरिक स्वस्थता भी प्राप्त होती है । अमेरिका में एक महिला हुईं है - लुजी. एल. हे । उसने मेटा फिजिकल चिकित्सा पद्धति का विकास किया है, जो पूर्णतः आत्मालोचन पर आधारित है। लुजी का मानना है कि सभी प्रकार की बीमारियों का जन्म भावनात्मक विकृति के कारण होता है । उसने अपनी पुस्तक " हील यॉर बोडी” में रूग्ण व्यक्तियों पर किये गये प्रयोगों के आधार पर अनेक बीमारियों के भावनात्मक कारणों व उनके निवारण के उपायों की चर्चा की है । अब तक हजारों रोगियों को उसने इस पद्धति से स्वस्थ बनाया है । उसके जीवन में ही एक समय ऐसा आ जाता है जब वह स्वयं कैंसर से पीड़ित हो जाती है । डॉक्टर को चेकअप करवाया तो उसने ऑपरेशन की सलाह दी। लुजी ने निश्चय किया कि वह ऑपरेशन नहीं करायेगी । जिस पद्धति से दूसरों का उपचार करती है, उसी का प्रयोग स्वयं पर करेगी । अब उसने स्वयं की वृत्तियों का विश्लेषण किया । आत्मालोचन के द्वारा उसे अनुभव हुआ कि उसके मन में विरोध का भाव इतना तीव्र है कि वही इस बीमारी का कारण है । उसने मैत्री, क्षमा आदि विधायक भावनाओं का निरन्तर प्रयोग किया । परिणामस्वरूप कुछ ही समय के बाद वह पूर्णतः स्वस्थ हो गई । आत्मालोचन की यह चिकित्सा पद्धति प्रायश्चित्त तप का ही एक प्रकार है। दस प्रायश्चित्त के प्रकारों में पहला प्रकार आलोचना Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003142
Book TitleBat Bat me Bodh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaymuni Shastri
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1995
Total Pages178
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Education
File Size8 MB
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