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________________ २८ बात-बात में बोध विकृत होता रहता है । जड़ पदार्थ का आभामण्डल सदा एक सरीखा रहता है। चिकित्सा विज्ञान ने तो यहां तक तरक्की कर ली है कि आभामण्डल की तस्वीर के आधार पर छः महीने पूर्व ही डॉक्टर आनेवाले बीमारी को बता देता है । जीव के अस्तित्व के सम्बन्ध में विज्ञान की शोध अभी चालू है, एक दिन विज्ञान भी निर्णायक रूप में जीव को स्वीकार करेगा ऐसी हमको आशा है । भगवान महावीर ने तपस्या के बारह प्रकार बताये हैं। उनमें एक तप है --कायक्लेश । इसका अर्थ है---शरीर में कष्ट आने पर उसे समभाव से सहना । इसके भी अनेक प्रकार हैं। योगासन करना भी एक प्रकार का कायक्लेश तप है । चिकित्सा विज्ञान द्वारा योगासनों के महत्त्व को स्वीकार किया गया है । आजकल डॉक्टर भी अनेक प्रकार की बीमारियों के शमन के लिए योगासन बताते हैं। सही तो यह है कि व्यक्ति अगर नियमित योगासन करे तो बीमार पड़ने की परिस्थिति ही न आये। कायक्लेश तप द्वारा जहां आत्मा निर्मल होती है वहां शरीर और मन की स्थिरता, विकृतियों का नाश, रक्तशुद्धि व स्वस्थता आदि अनेक उपलब्धियां प्राप्त होती हैं। तपस्या का एक और प्रकार है-प्रायश्चित्त । निःशल्य होने की यह सुन्दर प्रक्रिया है। शिष्य गुरु के पास आता है और सरल हृदय से अपने दोष को गुरु के सामने निवेदन करता है। गुरु उसे दोष के अनुसार दण्ड देते हैं और उसे विशुद्ध करते हैं । मनोचिकित्सक भी रोग निवारण के लिए इसी पद्धति को सर्वोत्तम मानते हैं। मनोवैज्ञानिकों का कहना है, ज्यादातर बीमारियां "साइकोसोमेटिक” (मनोकायिक) होती हैं। शरीर पर प्रकट होने वाली बीमारी की जड़ मन में होती है। मनोविश्लेषक रोगी के मन में गहरे उतरते हैं और उसे सम्मोहित करके बीमारी के यथार्थ कारण को खोजते हैं। इस विधि से वे उसकी भीतरी ग्रन्थि का विमोचन करते हैं। निजी दोष को स्वीकार करना ही उनकी नजर में रोग का सही निदान है। ओमप्रकाश-मुनिवर ! ऐसी कोई घटना सुनायें जिससे प्रायश्चित्त और ___ मनोविज्ञा। सम्मत चिकित्सा पद्धति की समानता सिद्ध हो सके। मुनिवर-अमेरिका में नोर्मन विनसेन्ट पोल नाम का एक मनोवैज्ञानिक हुआ है । - उसके पास एक अध विक्षिप्त महिला आई। शरीर से भी ज्याद वह मन से बीमार थी। मनोवैज्ञानिक के पूछने पर उसने बताया Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003142
Book TitleBat Bat me Bodh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaymuni Shastri
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1995
Total Pages178
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Education
File Size8 MB
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