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________________ जैन धर्म और विज्ञान २५ बराबर बना रहता है । उपजाऊ मिट्टी पेड़ न होने से बहकर समुद्र में चली जाती है । वृक्षों के अभाव में आंधियों के कारण मिट्टी उड़कर धरती को मरुस्थल बना देती है । जंगलों को अगर नहीं काटा जाता तो अब तक ८० करोड़ हेक्टेयर भूमि को रेगिस्तान होने से बचाया जा सकता था । कलकत्ता विश्व विद्यालय के कृषि वैज्ञानिक डा० तारकमोहनदास के कथनानुसार कोई-कोई वृक्ष अपने जीवन से कई लाख रुपयों का लाभ प्रदान कर देता है । किन्तु मनुष्य इन्धन के लिए या अन्य स्वार्थ वश बहुमूल्य वन सम्पदा का नाश कर रहा है । उसका दुष्परिणाम भी उसे ही भोगना पड़ रहा है। वनस्पति का संयम अहिंसा का अंग तो है ही, मनुष्य जीवन की सुरक्षा के लिए भी जरूरी है । प्रदूषण का एक रूप और भी है, वह है- ध्वनि प्रदूषण । हमारे कान अस्सी डेसिबल तक की ध्वनि बिना कष्ट के सुन सकते हैं, इससे तेज ध्वनि कानों के लिए असह्य होती है । हमारे चारों ओर न जाने कितनी - कितनी कर्णकर्कश ध्वनियां गूंजती रहती हैं। कहीं मील के भोम्पू की आवाज, कहीं वाहनों की खड़खड़ाहट, कहीं मशीनों की घड़घड़ाहट, कहीं रेडियो व रेकार्ड पर आने वाले रॉक एण्ड रोल जैसा तीव्र संगीत, कहीं रात भर चलने वाले कीर्तन आदमी की शांति को भंग कर रहे हैं । वैज्ञानिकों का मानना है कि बढ़ते हुए ध्वनि प्रदूषण पर अगर नियन्त्रण नहीं किया गया तो एक दिन मानव जाति बहरी भी हो सकती है। तेज ध्वनि का प्रभाव केवल कानों पर ही नहीं पाचन तन्त्र, मस्तिष्क तथा स्नायु संस्थान पर भी पड़ता है । भगवान महावीर ने हवा में भी सूक्ष्म जीवों के अस्तित्व को स्वीकार किया है । ताली बजाना, दूसरों को कष्ट हो वैसी कर्ण कटुक भाषा बोलना जैन धर्म में निषिद्ध है । ओमप्रकाश - ध्वनि प्रदूषण को किस प्रकार रोका जा सकता ? अशक्य है और उसकी मुनिवर - महावीर की अहिंसा को अगर अपना लिया जाता तो ध्वनि प्रदूषण की समस्या ही उत्पन्न नहीं होती । किन्तु यह भी निश्चित है उस भूमिका तक पहुँचना राष्ट्र व समाज के लिए बात करना भी अव्यावहारिक होगा । विज्ञान द्वारा उत्पन्न की हुई इस समस्या का समाधान विज्ञान ही खोज सकता है। आज कुछ विकसित देशों में इस तरह की गाड़ियां आविष्कृत हो गई है कि सैंकड़ों गाड़ियां सड़क पर चलती है किन्तु कोई आवाज नहीं होती । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003142
Book TitleBat Bat me Bodh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaymuni Shastri
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1995
Total Pages178
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Education
File Size8 MB
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