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________________ २४ बात-बात में बोध समस्या है और अनेक नई सममस्याओं का जनक है। कहावत है, "खाली दिमाग शैतान का घर ।" निठल्ले आदमी को शैतानी ही सूझती है। इसलिए लघु उद्योगों को बढावा देना आम आदमी को आत्म निर्भर बनाना है ।। कहते हैं, 'दत्सून' नाम की कम्पनी में सिर्फ १८ व्यक्ति ही प्रतिदिन दो हजार कारों का निर्माण कर लेते हैं। कुछ फेक्ट्रियां ऐसी भी विकसित हुई हैं जहां रोबोट और कम्प्यूटर ही सैंकड़ों व्यक्तियों का काम कर लेते हैं। बड़े उद्योग धन्धों के विस्तार की बात न केवल प्रदूषण की समस्या की दृष्टि से, अन्य दृष्टियों से भी विचारणीय हैं । ओमप्रकाश-पेड़ पौधों की आजकल अन्धा धुन्ध कटाई हो रही है यह भी तो पर्यावरण प्रदूषण का एक महत्त्वपूर्ण कारण है, क्या जैन दर्शन इससे सहमत है ? मुनिवर-----जैन दर्शन में पेड़ पौधों की कटाई पर पूर्णतः प्रतिबन्ध है । भगवान महावीर ने वनस्पति में भी जीवन बताया है । इस तथ्य को वैज्ञानिकों ने भी स्वीकार कर लिया है। सबसे पहले डा. जगदीश चन्द्र वसु ने कहा था कि पेड़-पौधों में भी प्राण है। अमेरिकन वैज्ञानिक क्लीन वेकस्टर ने प्रयोगों से सिद्ध कर दिया कि पौधों में भी भावना होती है। वे अपने मित्रों व शत्रुओं को पहचानते हैं । इन वर्षों में वैज्ञानिकों द्वारा पेड़ पौधों पर ऐसे भी प्रयोग किये गये जिनमें कम्प्यूटर के माध्यम से जाना गया कि वे प्यास लगने पर सूचना देते हैं कि हमको पानी चाहिए, पतझड़ का मौसम आने पर वे बताते हैं कि अब पतझड़ का समय आ गया है आदि । वनस्पति में जीवत्व अब असंदिग्ध रूप से स्वीकार किया जा रहा है। जैन धर्म में पेड़-पौधों की कटाई तो वर्जनीय है ही, हरी घास पर चलना भी अहिंसा की दृष्टि से निषिद्ध है। इकोलोजी के विद्यार्थी जानते हैं कि पेड़-पौधे मनुष्य जीवन की रक्षा में कितनी महत्त्वपूर्ण भूमिका रखते हैं। ये वृक्ष वायुमण्डल में फेली कार्बन डाई ऑक्साइड जैसी दूषित गैस को आहार के रूप में ग्रहण करते है व मनुष्य के लिए प्राणतत्त्व ऑक्सीजन को छोड़ते हैं। आज अन्धाधुन्ध पेड़ों की कटाई होने से शुद्ध प्राणवायु का अभाव बढ़ रहा है । वर्षा भी वृक्ष बहुल धरती पर अधिक होती है। जंगलों के कट जाने से बरसात में कमी आई है। फलस्वरूप बार-बार अकाल पड़ते हैं। पहाड़ों ने नंगे होने से वहां जल रुकने की क्षमता नहीं रही, इसी कारण बाढ का खतरा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003142
Book TitleBat Bat me Bodh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaymuni Shastri
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1995
Total Pages178
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Education
File Size8 MB
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