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________________ जातिवाद की अतात्त्विकता १५७ आन्तरिक व्यक्तित्व का ही होता है। सज्जनता, उदारता, प्रेम आदि गुण आन्तरिक व्यक्तित्व के अंग है। हीरा कीचड़ में पढ़ा होने से कभी अनुपयोगी और कम मूल्य वाला नहीं हो जाता। महत्ता गुणों की है गुणी व्यक्ति सबकी प्रियता को पा लेता है चाहे फिर बाह्य परिवेश कैसा ही क्यों न हो । एक कवि ने बड़ा सुन्दर लिखा है "हंस भी सफेद और बगुला भी सफेद होता है, पर क्या गुण भी कभी रंग में कैद होता है ।" सफेद रंग वाले सब हंस नहीं होते और काले रंग वाले सब कौए नहीं होते । बगुले का रंग हंस की तरह सफेद होता है और कोयल का कौए की तरह काला होता है । पर काली होने से कोयल अप्रिय नहीं लगती और सफेद होने से बगुला कभी हंस की तुलना नहीं कर सकता । ठीक इसी तरह ऊंची जाति में जन्म ले लेने से सब अच्छे नहीं हो जाते और नीची जाति में जन्म ले लेने से सब गिरे हुए और निम्न कोटि के नहीं बन जाते। इसी प्रसंग में एक रोचक घटना है । आनंद - सुनाइये सर ! मनोहर - किसी दफ्तर में एक व्यक्ति, साहब से मिलने आया । सुन्दर आकृति कुलीन परिवार व इत्र से सुगन्धित वस्त्रों वाला होने के कारण सबका ध्यान उसने अपनी ओर खींच लिया। साहब उसके आते ही खड़ा हुआ, उससे हाथ मिलाया और सम्मानपूर्वक उसे अपने पास कुर्सी पर बिठाया। पांच सात मिनट बात करके वह वहां से रवाना हो गया । कुछ समय बाद एक बेडोल और पुराने वस्त्र पहने एक बूढ़ा व्यक्ति साहब के पास आया | साहब ने अनमने ढंग से बात शुरू की । उसकी बोली व व्यवहार से साहब इतना प्रभावित हुआ कि एक घंटा तक वह उससे बातचीत करता रहा । जब वह वृद्ध रवाना होने लगा तब साहब स्वयं उठकर बाहर दरवाजे तक उसे पहुंचाने गया, उसके पांव छुए और फिर आने के लिए अनुरोध किया। दूर बैठा एक व्यक्ति जो इन दोनों घटनाओं का साक्षी था, साहब के इस व्यवहार को देख कर असमंजस में पड़ गया । पास में आकर साहब से बोलामहोदय ! कुछ समय पहले एक व्यक्ति आपसे मिलने आया, आप खड़े हुए, उसका आदर किया किन्तु जाते समय उसे कोई सम्मान नहीं दिया और अभी एक वृद्ध सज्जन जब आए तो आप बैठे रहे और अनमने होकर बात शुरू की, पर जाते समय उसे द्वार तक पहुँचाया, बड़ा सम्मान दिया, वापस आने का आग्रह भी किया, यह इतना Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003142
Book TitleBat Bat me Bodh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaymuni Shastri
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1995
Total Pages178
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Education
File Size8 MB
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