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बात-बात में बोष
अन्तर क्यों ! साहब ने रहस्य खोलते हुए एस व्यक्ति को बताया कि पहला व्यक्ति सिर्फ रंग, रूप व वस्त्रों से सुन्दर था, विचार और व्यवहार से सुन्दर नहीं था। दूसरा व्यक्ति बाहर से आकर्षक नहीं था किन्तु उसका आन्तरिक जीवन, बोलने का ढंग बड़ा मनमोहक था। इसी कारण पहले व्यक्ति से मैंने पांच सात मिनट में बात पूरी करली और दूसरे से मैं घंटे भर काम छोड़कर बाते करता रहा । फिर उसने पूछा-साहब यह दूसरा व्यक्ति किस जाति का था ? साहब ने झंपकर कहा-जाति से मुझे क्या लेना देना, मैं तो व्यक्ति का अंकन
उसके जीवंत गुणों से करता हूं। आनंद-घटना तो आपने अच्छी सुनाई फिर भी आपसी जाति भेद को कैसे
मिटाया जा सकता है ? -मनोहर-अगर हम भेद दृष्टि से देखेंगे तो भेद का कहीं अन्त भी नहीं
आएगा। जाति भेद की तरह और भी अनेक भेद है। एक धनवान दूसरा गरीब, एक पढ़ा-लिखा दूसरा अनपढ़, एक गौर वर्ण दूसरा कृष्ण वर्ण, एक भारतीय दूसरा विदेशी, एक जेनी दूसरा सनातनी इस तरह के अगणित भेद मानव जाति में मिलेंगे 'किन्तु भेदों के कारण हम मनुष्य को विभक्त नहीं कर सकते । हमारे आचार्यों का यह उद्घोष है-एकेव मानुषी जातिः। मनुष्य जाति एक है। हरिजन, महाजन, ब्राह्मण, किसान, क्षत्रिय इस तरह की सैंकड़ो, हजारों वर्ग व जातियाँ है किन्तु ये शाश्वत नहीं है, बदलती
रहती है। नन्द--जातियां तो ईश्वरकृत है, क्या वे भी बदलती है ! मनोहर-कहीं पढ़ लिया या किसी से सुन लिया, क्या इतने मात्र से जाति
ईश्वरकृत हो जायेगी! यह तो समाजशास्त्रियों की चाल की हुई व्यवस्था है। सेकड़ों-हजारों प्रकार की जातियां है, ईश्वर उनको बनाने कब आता है ! जैन आगमों में जिन जातियों का उल्लेख मिलता है उनमें से अधिकांश आज अनुपलब्ध है। भारत में शक, हूण आदि अनेक जातियों के लोग समय-समय पर आये लेकिन वे भारतीय जातियों में समा गए। जातिगत परिवर्तन होता रहता है व होता रहेगा। एक बात और है, ईश्वर अगर किसी को महाजन, किसी को हरिजन बनायेगा तो यह मानव जाति के प्रति उसका पक्षपात कहा जाएगा। सच्चाई तो यह है कि ईश्वर कभी ऐसे प्रपंच में पड़ता ही नहीं।
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