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________________ १५६ बात-बात में बोध आनन्द - सर, यह तो आदर्श की बात हो सकती है । व्यवहार की बात तो यही है कि व्यक्ति की पहचान उसकी जाति ही है । ---- मनोहर - यह बहुत स्थूल व अधूरी पहचान है। जाति के आधार पर किसी व्यक्ति के बारे में कोई निर्णय जहां किया जाता है वहां कई बार भ्रांति हो जाती है। संत रैदास चमार जाति के थे। वे अपनी संतता के कारण लाखों के पूजनीय बन गए। जैन इतिहास में हरिकेशी मुनि व मेतार्य सुनि की घटना प्रसिद्ध है । वे चंडाल कुलोत्पन्न थे फिर भी अपनी विशिष्ट तपस्या व साधना के कारण जन-जन के लिए वंदनीय बन गए । निम्न जाति में जन्म लेना व्यक्ति की नियति हो सकती है किन्तु सम्यक् पुरुषार्थ के द्वारा वही व्यक्ति उच्च और अभिवंदनीय बन सकता है । ऐसे भी अनेक व्यक्ति हुए हैं जो उच्च जाति में जन्म लेकर अपनी निन्दनीय हरकतों के कारण जन-जन के लिए तिरस्कार के पात्र बन गए । महर्षि बाल्मीकि का जन्म ब्राह्मण कुल में हुआ था। अपने प्रारम्भिक जीवन में वे रत्नाकर डाकू के नाम से प्रसिद्ध थे । लुटखसोट जैसे निन्दनीय कर्म के कारण वे सबके लिए घृणास्पद बन गये। संतों की प्रेरणा पाकर उनका जीवन बदला और वे महान ऋषि के रूप में विख्यात हो गए। अपने महान् गुणों के कारण वे जगत्पूज्य बन गये । हकीकत में व्यक्ति की पहचान उसके अच्छे बुरे कर्म व उसके गुण अवगुण हैं और उसी का दूसरों पर प्रभाव पड़ता है । नन्द - इसे भी तो नकारा नहीं जा सकता कि गुण और कर्म से परिचित होने में समय लगता है, पहला प्रभाव तो रंग, रूप व जाति का ही पड़ता है। हम देखते हैं, एक व्यक्ति जो आभिजात्य परिवार से सम्बन्धित, सुन्दर रंग-रूप व अच्छे वस्त्र पहने हुए होता है, वह सबके आकर्षण का केन्द्र बिन्दु बन जाता है, दूसरा नीच कुलोत्पन्न, बदसूरत आकार वाला, फटे पुराने वस्त्र पहने होता है, वह हर व्यक्ति के लिए घृणा का पात्र बन जाता है । मनोहर - यह सारा व्यक्ति का बाहरी परिवेश है । इसका भी प्रभाव पड़ता कागज के फूल दूर है लेकिन तात्कालिक और अस्थायी । जिस प्रकार से बड़े सुन्दर लगते हैं किन्तु सुगन्ध रहित होने के खिचाव नहीं होता और सुगन्धित फूल पथिक के एक बार के लिए रोक लेते है, उसी प्रकार नाम, रूप व जाति भी दूसरों पर एक अस्थायी प्रभाव डालते हैं । लेकिन स्थायी प्रभाव कारण उनमें कोई बढ़ते कदमों को Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003142
Book TitleBat Bat me Bodh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaymuni Shastri
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1995
Total Pages178
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Education
File Size8 MB
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