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________________ १५२ बात-बात में बोध रमेश-आपके हिसाब से द्रव्य साधु को वंदना नहीं करनी चाहिये क्योंकि वर्तमान में वह साधु पर्याय में नहीं है ! अहंतकुमार-बिल्कुल ठीक समझा है तुमने। वन्दना तो साधना में स्थित साधु की ही की जाती है। भूतकाल में वह साधु था या भविष्य में साधु बनेगा इससे वंदनीय नहीं कहलाता। चौथा निक्षेप है -भाव निक्षेप । नाम के अनुरूप गुण और क्रिया में प्रवृत्त होना भाव निक्षेप है । जैसे-अध्यापन कार्य में प्रवृत्त व्यक्ति को अध्यापक कहना आदि। भगवान महावीर जब तक छद्मस्थ अवस्था में थे, साधना व तपस्या करते थे तब तक द्रव्य दीर्थकर थे। परमज्ञान पा लेने के बाद जब उन्होंने साधु-साध्वी, श्रावक-श्राविका रूप चार तीर्थ की स्थापना की तब वे भाव तीर्थ कर बने । पूर्ण जागरुकता के साथ की जाने वाली क्रिया के लिए भी भाव शब्द का प्रयोग किया जाता है। जैसे एक व्यक्ति भोजन कर रहा है पर मन कहीं और चक्कर लगा रहा है तो उसे द्रव्य भोजन की क्रिया कहा जायेगा। अगर वह तन्मयता से भोजन करता है तो वह भाव भोजन की क्रिया कहलायेगी। महावीर-इन चार निक्षेपों में सबसे अच्छा आप किसे मानते हैं ? अहतकुमार-वस्तु के समग्र प्रतिपादन की दृष्टि से अपने-अपने अर्थ में यों तो सभी अच्छे है, फिर भी अध्यात्म की दृष्टि से भाव निक्षेप ज्यादा महत्त्वपूर्ण है और वन्दनीय भी। नाम, स्थापना और द्रव्य वास्तविक अर्थ से शन्य होते हुए भी सिर्फ पहचान के लिए होते हैं, जबकि भाव निक्षेप वास्तविक और गुण क्रिया से युक्त होता है। रमेश-निक्षेप पद्धति को जानने व प्रयोग करने के पीछे क्या उद्देश्य है ? अर्हतकुमार-लोक व्यवहार की सरसता बनाये रखना व भाव भाषा की विसंगतियों को मिटाना इस पद्धति के ये दो उद्देश्य हैं। इस पद्धति का ज्ञान हुए बिना पग-पग पर व्यक्ति को उलझनों का सामना करना पड़ता है। एक व्यक्ति किसी समय चित्रकारी करता था, आज वह अध्यापन करता है, फिर भी उसे चित्रकार कह दिया जाता है। निक्षेपों का जानकार इस प्रयोग को सुनकर सन्देह या किसी उलमन में नहीं पड़ेगा। एक गरीब व्यक्ति को भी इन्द्र नाम से पुकारना नाम निक्षेप से सत्य है अतः इसमें कहीं कोई विसंगति नजर नहीं आयेगी। इस प्रयोग से हम अनेक अर्थों वाले शब्द के अपेक्षित अर्थ को ही ग्रहण करेंगे। अनपेक्षित अर्थ के जंजाल में भटकेंगे नहीं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003142
Book TitleBat Bat me Bodh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaymuni Shastri
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1995
Total Pages178
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Education
File Size8 MB
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