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निक्षेपषाद
" पाहन पूज्यां हरि मिले, (तो) मैं पूजूं पहाड़, ताते तो चाकी भली, पीस खाय संसार ।"
अगर पत्थर को पूजने से भगवान मिलते हों तो मैं पहाड़ की पूजा करूंगा । पर इस पूजा से तो पत्थर की चक्की भी अच्छी है, जो अन्न को पीसकर आटा तैयार करती है और उससे लोग अपनी क्षुधा शान्त करते हैं ।
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न केवल जैन धर्म बल्कि संसार के अनेक धर्म ऐसे हैं, जो प्रतिमा पूजा में विश्वास नहीं रखते कुछेक ऐसे भी हैं जो प्रतिमा की पूजा करते हैं । सबका अपना स्वतन्त्र चिन्तन है । पर हकीकत में कौन सही है, कौन गलत है, यह निर्णय तुम स्वयं करलो ।
रमेश-मेरी नजर में किसी भी महापुरुष की प्रतिमा पूजने की वस्तु नहीं है, केवल उस महापुरुष की स्मृति कराने का साधन मात्र बन सकती है। महावीर - एक कारण और भी तो है, प्रतिमा पत्थर या किसी धातु विशेष की बनी होती है इसीलिए वह जड़ है। महापुरुष तो जीवित व्यक्ति होता है, वह चैतन्य लक्षणवाला होता है । चेतनामय होकर हम जड़ को भगवान मानकर पूजें यह बुद्धिगम्य भी नहीं है ।
अहं तकुमार - मैं मानता हूं, स्थापना निक्षेप को तुम दोनों ने अच्छे ढंग से समझ लिया है । अब तीसरे द्रव्य निक्षेप पर भी चर्चा कर लें । द्रव्य निक्षेप से मतलब है - किसी भी व्यक्ति या वस्तु में उस अवस्था का अभाव होने पर भी भूतकाल और भविष्यत्काल की अवस्था के कारण उसी पर्याय का वर्तमान में आरोपण कर देना । उदाहरण के तौर पर कोई व्यक्ति साधु बनेगा या अतीत में साधु था, उसे साधु कहना । एक व्यक्ति अतीत में पढ़ाता था, आज वह व्यापार कर रहा है, उसे अध्यापक कहना । यह द्रव्य निक्षेप से सही है। शास्त्रों में वर्णन आता है कि राजा श्रेणिक आने वाले युग में पहला तीर्थंकर बनेगा । इस आधार पर श्रेणिक के लिए द्रव्य तीर्थंकर शब्द का व्यवहार किया जाता है । कालान्तर में भगवान बनने वाला व्यक्ति भी जब तक भगवत्ता को नहीं पा लेता तब तक द्रव्य निक्षेप के आधार पर भगवान कहा जाता है । द्रव्य शब्द का प्रयोग क्रिया विशेष के लिए भी किया जाता है अगर वह उपयोग शून्य अवस्था में की जाती है । जैसे- कोई व्यक्ति पूजा कर रहा है किन्तु मन उस क्रिया में नहीं है तो वह भी द्रव्य पूजा ही कहलायेगी !.
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