________________
१४८
बात-बात में बोध
नाम बदलना इसके वश की बात नहीं थी । तंग आकर इसने एक दिन पति से फिर कहा- या तो अपना नाम बदल लें, नहीं तो मैं ससुराल छोड़कर मायके चली जाऊंगी। ठनठनपाल ने कहा- -नाम बदलना मेरे हाथ में नहीं है। आखिर एक दिन वह ससुराल को छोड़कर मायके के लिए रवाना हो गयी । रास्ते में कुछ व्यक्ति एक अर्थी को श्मशानघाट की ओर ले जा रहे थे। उसने एक महिला से पूछा - बाई! कौन मर गया ? महिला ने कहा - इसी मौहल्ले में अमरकुमार नाम का युवक था, आज सुबह आयुष्य पूरा कर गया । मन ही मन वह सोचती रही—- अरे ! नाम अमरकुमार, फिर भी मर गया। थोड़ी दूर आगे चली तो उसने एक भिखारी को घर में भीख मांगते देखा । फटेहाल सूरत देखकर उसने दयावश उससे पूछा कि भाई ! तुम्हारा नाम क्या है ? उसने कहा मेरा नाम है धनपाल । फिर वह चिन्तन में डूब गयी - अरे ! नाम है धनपाल और दर-दर भीख मांगता है । फिर आगे बढ़ी तो उसने एक लड़की को गोबर के उपले बीनते हुए देखा । उससे नाम पूछने पर उसने लिछमी बताया । वह फिर विचारों में खो गयी- अरे ! नाम है लिछमी ! धन की देवी ! और छाणें बीन रही है । ठनठनपाल नाम के प्रति उसके मन में जो रोष था, अब वह शान्त हो गया । वह सोचने लगी- मेरा पति उनठनपाल है तो क्या, लाखों की सम्पत्ति का एक मात्र अधिकारी है। उसने अपने आपसे कहा
I
"अमर मरता मैं सुण्यो, भीख मांगे धनपाल,
लिछमी छाणां बिणती, आछो म्हारो ठनठनपाल ||
वह जैसे गयी वैसे ही वापस अपने ससुराल आ गयी ।
महावीर - बड़ी मजेदार कहानी सुनायी आपने ।
अर्हत कुमार - तुम लोग नाम निक्षेप के रहस्य को अब तो समझ गये होंगे । रमेश जी हां।
अर्हत कुमार - अब मैं विषय को आगे बढ़ा रहा हूँ। दूसरा है— स्थापना निक्षेप प। जो अर्थ वास्तव में नहीं है, किन्तु उसे वास्तविक रूप में स्थापित कर देना स्थापना निक्षेप है । इसके दो उपभेद है, पहलासद्भाव स्थापना-आकार के अनुरूप अर्थ को स्थापित करना । जैसे— एक लड़का अपने दादा की फोटो को देखकर कहता है- ये मेरे दादा है । दादा यद्यपि जीवित नहीं है, किन्तु उस फोटो में दादा की आकृति है । दूसरा, असदुभाव स्थापना - मूल आकार से शून्य किसी वस्तु
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org