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बात-बात में बोध (जैन दर्शन में विशारद पं० अर्हत कुमार का कक्ष में प्रवेश, दोनों ही
मित्र खड़े होकर उनका अभिवादन करते हैं।) रमेश, महावीर-नमस्कार. नमस्कार ! अहंत कुमार-क्या चर्चा चल रही है.! रमेश-कोई खास बात नहीं, मित्रों की बातें हैं। अहंत कुमार-ऐसी कोई गोपनीय बात हो तो मत बताओ। महावीर-अरे! आप तो बुरा मान गये। लो सुनो-हम कमरे में पढ़ रहे थे
कि अचानक एक गीत के स्वर हमारे कानों में पड़े। वह भगवान महावीर का स्तवन था। मेरे मित्र ने मुझसे कहा-"अरे, सुनो! तुम्हारी जय जयकार का गीत गाया जा रहा है ।" मैंने कहा-मेरा नहीं यह तो तीथकर भगवान महावीर का स्तवन है। बस, इतनी सी
बात थी। क्यों पंडित महोदय ! मैंने गलत तो नहीं कहा? अहंत कुमार-- तुम्हारा कहना बिलकुल ठीक था। गीत तो गुणयुक्त महावीर
के गाये जाते हैं, गुणशन्य महावीर को कौन पूजता है। महावीर नाम होने से ही अगर व्यक्ति पूजा जाये तब तो सैंकड़ों इस नाम के व्यक्ति मिलेंगे, उनमें कोई चोर और शराबी भी हो सकता है, वे सब पूजे
जायेंगे। महावीर-बस, यही बात अभी हमारे बीच चल रही थी। अहंत कुमार-तुम्हारे मित्र के बात समझ में आयी या नहीं ? महावीर-बात तो बहुत सामान्य सी है । नहीं समझ में आये ऐसी तो है
नहीं। फिर भी जब आपका पदार्पण हो गया तो इस विषय को और
स्पष्टता से समझाने की कृपा करावें। अहंत कुमार-(रमेश से) क्यों रमेश ! महावीर की बात तुम्हारे गले उतरी
या नहीं? रमेश-गले तो खैर उतर गयी, फिर भी यह विषय अभी तक चर्चनीय है।
आप जेसे ज्ञानी व्यक्ति को पाकर मेरा मन इस विषय में कुछ नया
जानने के लिए लालायित हो रहा है। अहंत कुमार- इस विषय का विशद विवेचन जैन दर्शन में है। जिसे निक्षेप
सिद्धान्त के नाम से जाना जाता है। महावीर-यह तो एकदम नया नाम है । रमेश-निक्षेप सिद्धांत से क्या मतलब ? अर्हत कुमार-मैं यही बता रहा हूँ, तुम दोनों दत्तचित्त होकर सुनना। रमेश-ठीक है।
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