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१४ निक्षेपवाद
(कहीं दूर से एक गीत के बोल सुनाई दे रहे हैं, "होठां रा पठ थे खोलो, महावीर री जय बोलो। आत्मा रा पातक धोलो, महावीर री जय बोलो।" रमेश और महावीर कमरे में बैठे ध्यान लगाकर सुन रहे हैं) रमेश-महावीर ! तुम्हारा तो जीवन धन्य हो गया। महावीर-ऐसी क्या बात हुई ? मित्र ! रमेश-सुनो जरा कान लगाकर, तुम्हारी जय जयकार के गीत गाये जा
महावीर-(एक क्षण सुनकर) गीत तो गाये जा रहे हैं, पर ये गीत मेरे नहीं, __ भगवान महावीर के गाये जा रहे हैं। जिन्होंने आज से कुछ अधिक
अढ़ाई हजार वर्ष पहले इस भारत धरती पर जन्म लिया था। मैं
व्यर्थ ही क्यों मिया मिठू बनूं । रमेश-पर तुम्हारा नाम भी तो महावीर है । महावीर-नाम होने से क्या हुआ। पूजा महावीर नाम की नहीं होती, गुणयुक्त
महावीर की होती है। जैसे शरीर है किन्तु प्राण नहीं, फूल है लेकिन खुशबू नहीं तो बेकार है, वैसे ही नाम राम है लेकिन गुण नहीं तो
उसका कोई महत्त्व नहीं, न उसकी कोई स्तुति भी करता है। . रमेश-महत्त्व केसे नहीं है । अगर कोई महावीर नाम को पुकारेगा तो तत्काल
तुम उसकी बात को सुनने के लिए तैयार हो जाओगे। महावीर-अगर मुझे संबोधित कर कोई कहेगा तो मैं जरूर उसकी बात
सुनूंगा। मेरे नाम के दस व्यक्ति और भी हो सकते हैं, अगर किसी दूसरे महावीर को आवाज लगायी जायेगी तो उससे मेरा कोई संबन्ध नहीं होगा। अगर सम्बन्ध माना जाये तब तो किसी दूसरे महावीर
को गालियां निकाली जायेगी वो भी मुझे ही लगेगी। रमेश-नहीं, ऐसा तो नहीं होता । महावीर-ऐसा अगर नहीं होता तो महावीर के गीत गाने से मेरे गीत कैसे हो
गये, तुम ही बताओ?
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