________________
बात बात में बोध
व्यक्ति बड़ा है और नहीं भी। अपेक्षा को नहीं जानने वाले को संशय हो सकता है कि बड़ा है भी और नहीं भी, तो फिर क्या है ? किन्तु अपेक्षा को जिसने जान लिया उसको यह निश्चय हो जायेगा, बड़ा है अपने छोटे भाई की दृष्टि से और छोटा है अपनी बड़ी बहन की दृष्टि से। इसी तरह एक और उदाहरण है। कुछ व्यक्ति पास-पास खड़े थे एक व्यक्ति ने कहा-मैं पूर्व में खड़ा हूं, दूसरे ने कहा-पूर्व में नहीं, तू पश्चिम में खड़ा है, तीसरे ने कहा कि नहीं-नहीं उत्तर में खड़ा है; चौथे ने कहा कि-सब गलत कह रहे हैं, तूं दक्षिण में खड़ा है। परस्पर विरोध हो गया। उनको विवाद करते देख एक विवेकशील व्यक्ति ने उनको समझाया तब उनको लगा कि सबका कहना सही है कहीं कोई विरोध नहीं है। क्योंकि जो व्यक्ति उसके पीछे खड़ा है इस अपेक्षा से वह पूर्व में, जो आगे खड़ा है उस व्यक्ति की दृष्टि से पश्चिम में, दाहिनी तरफ खड़े व्यक्ति की अपेक्षा से उत्तर में, बाँयी
ओर खड़े व्यक्ति की अपेक्षा से वह दक्षिण में था। एक छात्र-दो विरोधी पक्षों में सामञ्जस्य स्थापित करने वाला यह सिद्धान्त
सचमुच प्रशंसनीय है। क्या विज्ञान में भी इसका कोई प्रायोगिक
स्वरूप मिलता है ? अध्यापक-इस साव भौम सिद्धान्त का प्रयोग विज्ञान में भी प्रचुर रूप से हुआ
है। जैन दर्शन में लोक-अलोक की तरह विज्ञान में भी जगत्-प्रतिजगत ( युनिवर्स, एण्टी युनिवर्स.), पदार्थ प्रतिपदार्थ ( मेटर, एन्टीमेटर ) तथा कण, प्रतिकण को स्वीकार किया गया है। वैज्ञानिकों ने प्रतिकण को खोजने के लिए सूक्ष्म उपकरणों का निर्माण कर लिया है। एक सेकेण्ड के पन्द्रह अरबवें हिस्से में होने वाले परिवर्तन को आज पकड़ा जा सका है। इस प्रयोग के द्वारा विज्ञान ने यह निष्कर्ष
दिया कि प्रतिकण के बिना कण का अस्तित्व टिक नहीं सकता। अध्यापक-तुमने प्रसिद्ध वैज्ञानिक आइन्सटीन का नाम तो सुना ही होगा ! कई छात्र-जी हाँ। अध्यापक-आइन्सटीन ने सापेक्षवाद के सिद्धान्त का प्रतिपादन किया।
स्याद्वाद और सापेक्षवाद एक दूसरे के काफी निकट है। एक उदाहरण के द्वारा आइन्सटीन सापेक्षवाद की व्याख्या किया करते थे कि एक व्यक्ति जब चूल्हे के पास बैठता है तो पाँच मिनट उसे एक घंटा ज्यों लगती है। वही जब अपनी प्रेयसी के पास बैठता है तो एक घंटा उसे पाँच मिनट के बराबर लगने लगता है। समय एक
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org