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________________ १२८ बात-बात में बोध वर्षा न हो तो अच्छा रहे। एक लड़की वर्षा की प्रार्थना कर रही है तो दूसरी वर्षा को बुरी बता रही है। स्याद्वाद का विद्यार्थी इसे आसानी से समझ जायेगा कि एक ही समय व एक ही परिस्थिति किसी के लिए सुखद है तो किसी के लिए दुःखद । एक छात्र-महोदय, इस तरह हर कथन के साथ अगर हम अपेक्षा को जोड़ेंगे तो निश्चयपूर्वक कुछ बोल भी नहीं पायेंगे। अध्यापक --- सही तो यह है कि अपेक्षा को साथ में जोड़े बिना हम निश्चय पूर्वक बोल भी नहीं सकते हैं। किसी भी सत्य को सही ढंग से समझने के लिए उसके पीछे जुड़ी अपेक्षाओं को तो समझना ही होगा। उदाहरण के तौर एक ही व्यक्ति स्वयं में पिता, पुत्र, नाना, चाचा, साला, जवाई आदि अनेक रूपों को लेकर चलता है। अगर इन संज्ञाओं के पीछे जुड़ी अपेक्षाओं को हमने समझ लिया तो उस व्यक्ति को हम समग्रता से जान जायेंगे, नहीं तो असमंजस में पड़ जायेंगे कि यह क्या-जो पिता है वह पुत्र केसे ? चाचा या नाना कसे ? अपेक्षा साथ में जुड़ी हुई है तो समझने में कठिनाई नहीं होगी कि वह पिता है अपने पुत्र की दृष्टि से न कि अपने पिता की दृष्टि से । अपने पिता की दृष्टि से तो वह व्यक्ति पुत्र ही है न कि पिता । अपेक्षाओं को नहीं समझने के कारण ही तो कई विवाद खड़े हो जाते हैं। एक छात्र-वह कैसे ? अध्यापक-छोटी-सी कहानी से मैं इस बात को समझाऊँगा। कुछ अन्धे व्यक्ति एक म्यूजियम में चले गये। भीतर घुसते ही एक संगमरमर का बना हाथी खड़ा था। किसी ने उनको हाथी के पास ले जाकर कहा-भाइयों। यह म्यूजियम का हाथी है। उन्होंने उसको छकर अपने अनुमान से हाथी का वर्णन करना शुरू कर दिया। एक ने सुंड पर हाथ लगाकर हाथी को केले जैसा बताया। दूसरे ने पैरों के हाथ लगाकर खम्भे जेसा तीसरे ने कान के हाथ लगाकर छाज जैसा और चौथे ने पेट के हाथ लगाकर उसको दीवार जैसा बताया। आपस में एक-दूसरे के कथन को वे गलत ठहराने लगे। एक आँख वाला व्यक्ति वहाँ पहुँचा। उनके विवाद को लेकर कुछ क्षण हंसता रहा, फिर बोला, भाइयों ! झगड़ते क्यों हों ! तुम सब सही हो और गलत भी। अंधों ने पूछा-कैसे उसने उत्तर दिया-तुम उब हाथी के एक-एक अंग का वर्णन कर रहे हो और उसी को सम्पूर्ण हाथी बता रहे हो अतः सब झूठे हो। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003142
Book TitleBat Bat me Bodh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaymuni Shastri
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1995
Total Pages178
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Education
File Size8 MB
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