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स्याद्वाव
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अध्यापक - सर्व सम्मति से महावीर को कक्षानायक नियुक्त किया जाता है । देखो विद्यार्थियों ! आज के इस प्रसंग से तुम जैन दर्शन के स्याद्वाद सिद्धांत को बहुत आसानी से समझ सकते हो ।
एक छात्र-क्या होता है स्याद्वाद ?
अध्यापक - स्याद् का अर्थ है कथंचित्, वाद का अर्थ है कथन । दूसरे शब्दों में कहा जाये तो स्याद्वाद का तात्पर्य है - अपेक्षावाद, अपेक्षा के द्वारा हर व्यक्ति या वस्तु का प्रतिपादन करना
वस्तु का सम्पूर्ण ज्ञान अनेकान्त दृष्टि के द्वारा सम्भव है और स्यादवाद के द्वारा वह अनेकान्तात्मक वस्तु वाणी का विषय बनती है । उसका समग्र प्रतिपादन सापेक्षता के द्वारा ही किया जा सकता है। कोई भी कथन निरपेक्ष नहीं हो सकता, जैसे- एक विद्यार्थी बौद्धिकता की अपेक्षा अच्छा है और वक्तृत्व की अपेक्षा अच्छा नहीं है । वैसे ही किसी के लिए दूध लाभकारी है तो किसी के लिए हानिकारक । ऊनी कपड़ा सर्दी में अच्छा है, गर्मी में अच्छा नहीं । एक ही समय किसी के लिए अच्छा है, किसी के लिए बुरा । इस प्रकार अपेक्षापूर्वक कथन करना स्याद्वाद है ।
भगवान महावीर ने अपने प्रवचनों में इसी शैली का प्रयोग किया है । श्राविका जयन्ती ने भगवान से पूछा-प्रभो ! जीव का जागना अच्छा है या सोना ? भगवान ने फरमाया धार्मिक का जागना अच्छा है और अधर्मीजनों का सोना अच्छा है । इसी तरह के प्रश्नोंत्तरो से उनका वाङमय भरा पड़ा है ।
एक छात्र - सर आप कहानी के द्वारा इस जटिल विषय को स्पष्ट करेंगे तो
अच्छा रहेगा |
अध्यापक – तो सुनो ! एक कुम्हार के दो लड़कियां थी । एक किसान के घर ब्याही गई, दूसरी कुम्हार के घर । पिता अपनी लड़कियों से मिलने गया । किसान के घर ब्याही लड़की उदास रहती थी । पिता के पूछने पर उसने बताया कि पिताजी बरसात नहीं हो रही है, यही मेरे दुःख का कारण है। मैं चाहती हूँ जल्दी से जल्दी बरसात हो जाये ताकि फसल पककर तैयार हो जाए। कुछ दिन बाद पिता जब अपनी दूसरी लड़की से मिलने गया तो उसको भी उदास देखा, पिता ने उससे भी उदासी का कारण पूछा तो उसने कहा - पिताजी ! आकाश में बादल मंडरा रहे हैं, घड़े पकने को रखे हुए है । सोच रही हूँ अगर बरसात हो गई तो मेरी सारी मेहनत चौपट हो जायेगी कुछ दिन
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