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________________ कम वाद १२३ है और आत्मा अरुपी / निराकार है फिर इनका सम्बन्ध किस प्रकिया से होता है ? अमरनाथ -- तुम्हारी जिज्ञासा उचित है। अरूपी आत्मा के साथ रुपी कर्म का सम्बन्ध असंभव है इसीलिए तो मुक्तात्मा के साथ कर्म का कोई सम्बन्ध नहीं होता। लेकिन संसारी आत्मा स्वरूपतः अमूर्त होते हुए भी कर्म बद्ध होने के कारण पूरी तरह अमूर्त नहीं है । कर्मशरीर से प्रतिक्षण जुड़ी रहने के कारण उसको रुपी / आकारवान् भी कहा जाता है । अरुण - आत्मा कर्मों को किस तरह ग्रहण करती है ? अमरनाथ - जिस तरह जलता हुआ दीपक, बाती के द्वारा प्रतिक्षण तेल को खींचता रहता है वैसे ही आत्मा अपनी प्रवृत्ति के द्वारा प्रतिक्षण कर्मों को खींचती रहती है । -यह भी बतायें कि कर्म बन्ध का एक ही रूप है या इसके भी कई रूप हैं ? अरुण अमरनाथ — कर्मबन्ध के चार रूप हैं - प्रकृति, स्थिति, अनुभाग और प्रदेश बन्ध के ये सभी प्रकार एक ही समय में एक साथ होते हैं। इनमें भी प्रदेश बन्ध सबसे पहला हैं । इसका अर्थ है- आत्मा के साथ कर्मों का दूध-पानी की तरह एकी भाव। उसके साथ ही प्रकृति बन्ध होता है अर्थात बद्ध कर्म की क्या प्रकृति है, उसका स्वभाव क्या है ? जैसे ज्ञानावरणीय कर्म का स्वभाव ज्ञान को ढकने का है, दर्शनावरणीय कर्म का स्वभाव दर्शन गुण को ढकने का है, मोहनीय कर्म का स्वभाव व्यक्ति को दिग्मूढ़ बनाना है, अन्तराय कर्म का स्वभाव कार्यों में विघ्न डालना है आदि । कर्म की मूल प्रकृतियां ज्ञानावरणीय आदि आठ है जो पहले बता दी गयी है, इनकी उत्तर प्रकृतियां ६७ है । बद्धकर्म की प्रकृति के साथ ही उसकी स्थिति का निर्धारण होता है निश्चित समय के बाद वह कर्म झड़कर आत्मा से अलग हो जाता है, यह स्थिति बंध कहलाता है। कर्म पुद्गलों के रस की तीव्रता या मन्दता का निर्धारण अनुभाग बन्ध है । 1 तरुण - पिताजी ! आत्मा और कर्म का सम्बन्ध परस्पर कब हुआ ? A अमरनाथ -- आत्मा और कर्म का सम्बन्ध अनादिकाल से चला आ रहा है। अगर सम्बन्ध की शुरूआत मानें तो यह भी मानना होगा कि इस सम्बन्ध से पहले आत्मा कर्म मुक्त थी। पर कर्ममुक्त आत्मा संसार में रहती नहीं। इसलिए इस सम्बन्ध की कोई आदि नहीं है । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003142
Book TitleBat Bat me Bodh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaymuni Shastri
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1995
Total Pages178
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Education
File Size8 MB
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