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________________ कर्मवाद १२१ बिना एक कदम भी चला नहीं जा सकता, ऐसे ही कर्म टूटे आयुष्य बिना जीव जन्म-मरण से मुक्त नहीं हो सकता । नाम कर्म चित्रकार की तरह है । चित्रकार नये-नये चित्र बनाता है वैसे ही नाम कर्म विविध प्रकार के रंग, रूप व शरीर प्रदान करता है । कुम्भकार की तरह गोत्र कर्म है । कुम्भकार मिट्टी के तरह-तरह के बर्तन बनाता है, वैसे ही गोत्र कर्म जीव को उच्चता व नीचता प्रदान करता है । अन्तराय कर्म भण्डारी की तरह है । राजा का आदेश होने पर भी भंडारी के दिये बिना इच्छित वस्तु नहीं मिलती, वैसे ही अन्तराय कर्म पग-पग पर विघ्न उपस्थित करता रहता है। अरुण-बड़ा अच्छा समझाया आपने । एक बात बतायें कि कर्म सिद्धान्त भगवान् ने बताया यही इसकी सत्यता का प्रमाण है या कुछ और भी ? अमरनाथ - भगवान् ने बताया, इसके अलावा भी हमारे पास प्रमाण हैं । बहुत सारी स्थितियां ऐसी हैं जिनसे कर्म सिद्धांत की प्रामाणिकता सिद्ध होती है । जैसे- एक ही परिवार में जन्म लेने वाले दो लड़के, एक स्वस्थ रहता है, दूसरा प्रतिदिन बीमार रहता है, एक सुखी है, दूसरा दु:खी है, एक धनवान बन जाता है, दूसरा गरीब रह जाता है, एक योग्य दूसरा अयोग्य रह जाता है । इस विविधता का कारण कर्म ही तो है । तरुण - इस विविधता का कारण परिस्थिति भी तो हो सकती है। अमरनाथ- परिस्थिति भी कर्म का ही परिणाम है । एक व्यक्ति सम्पन्न होने के बावजूद शारीरिक स्थिति के कारण रात-दिन दुःखी रहता है, चारों ओर प्रतिकूलता होने पर भी पूर्व संचित शुभ कर्मों के कारण एक व्यक्ति अनुकूल परिस्थिति को पा लेता है। दो विद्यार्थी समान बुद्धि वाले, अच्छा श्रम करने पर भी एक परीक्षा के समय बीमार पड़ जाता है, पीछे रह जाता है, दूसरा आगे बढ़ जाता है । हमें व्यक्ति की सफलता व विफलता में परिस्थिति कारणभूत लगती है पर उस परिस्थिति के पीछे भी एक हेतु है और वह है-कर्म 1 तरुण- अगर हम अपनी वर्तमान स्थिति का एक मात्र कारण कर्म ही मान लेंगे तो फिर क्या नियतिवाद को बल नहीं मिलेगा। जैसा कर्म किया है फल तो वैसा ही मिलेगा, पुरुषार्थ की क्या जरूरत है, क्या ऐसी भावना नहीं पनपेगी ! अमरनाथ - कर्मवाद कभी पुरुषार्थ को कमजोर नहीं करता । कर्मवाद का अर्थ इतना ही है- हम अपनी वर्तमान परिस्थिति के लिए दूसरों को Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003142
Book TitleBat Bat me Bodh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaymuni Shastri
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1995
Total Pages178
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Education
File Size8 MB
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