________________
१२.
बात-बात में बोध होगा। जैसे शराब जड़ होते हुए भी व्यक्ति को उन्मत्त बना देती है, क्लोरोफार्म सूंघते ही व्यक्ति संज्ञा रहित हो जाता है वैसे ही कर्म
जड़ होते हुए भी चेतन पर अपना प्रभाव डाले बिना नहीं रहते। तरुण-ये आठ कर्म आत्मा को किस रूप में प्रभावित करते हैं ? अमरनाथ-कर्म आत्मा को चार रूपों में प्रभावित करते हैं । १. आवरण
रूप २. विकार रूप ३. अवरोध रूप ४. शुभ-अशुभ का संयोग रूप ।' १. आवरण रूप-ज्ञानावरणीय और दर्शनावरणीय कर्म आत्मा के मुल गुण ज्ञान और दर्शन को आवृत करते हैं। हर व्यक्ति में ज्ञान और दर्शन की क्षमता में अन्तर रहता है इसका कारण इन दोनों कर्मों का हल्कापन व भारीपन ही है । २. विकार रूप-आत्मस्वरूप को विकृत बना देना मोहनीय कर्म का कार्य है। ३. अवरोध रूप-आत्मा की शक्ति व पुरुषार्थ में अवरोध पैदा करना अन्तराय कर्म का कार्य है। ४. शुभ-अशुभ का संयोग रूप-शेष चार कर्म वेदनीय, नाम, गौत्र और आयुष्य के उदय से जीव को शुभ व अशुभ का संयोग होता रहता है। साता वेदनीय कर्म के द्वारा सुखानुभूति और असाता वेदनीय कर्म से दुःखानुभूति होती है। शुभ नाम कर्म से सुन्दर रूप, स्वस्थ शरीर आदि की प्राप्ति होती है और अशुभ नाम कम से विकृत रूप, रुग्ण शरीर की प्राप्ति होती है। उच्च गोत्र कर्म के कारण उच्चता, ऐश्वर्यशीलता व नीच गौत्र कर्म के कारण दीनता व अनादेयता की प्राप्ति होती है। शुभ आयुष्य कम के कारण व्यक्ति को शुभ व सुखद आयु प्राप्त होती है और अशुभ आयुष्य कर्म
के कारण छोटी, अशुभ व दुःखद आयु प्राप्त होती है। तरुण-पिताश्री ! कर्म का विषय गहरा है इसे सुगम बनाने के लिए आप
उदाहरणों के द्वारा समझायें तो अच्छा रहेगा। अमरनाथ-सुनो, ज्ञानावरणीय कर्म आंख पर पट्टी की तरह है, आंखों के
आगे पट्टी बंधी होने के कारण जैसे कुछ दिखाई नहीं देता वैसे ही ज्ञानावरणीय कर्म का प्रभाव है। दर्शनावरणीय कर्म प्रहरी के समान है। प्रहरी के मना करने पर राजा के दर्शन नहीं होते, ऐसा ही दर्शनावरणीय कर्म का प्रभाव है। मधु से लिप्त तलवार की धार के समान वेदनीय कर्म है। तलवार को चाटने से स्वाद मालूम पड़ता है, ऐसा है सात वेदनीय कर्म और जीभ कट जाती है, ऐसा है असाता वेदनीय कम। सुरापान की तरह मोहनीय कर्म आत्मा को उन्मत्त बनाता है ! बेड़ी की तरह है-आयुश्य कर्म । बेड़ी के टूटे
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org