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कमवाद
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जहर अगर किसी ने खाया हो तो मृत्यु की अनिवार्यता को कौन टाल सकता है। परमज्ञानी जानते है पर कर्म फल में वे हस्तक्षेप नहीं करते । बुद्ध के जीवन का प्रसंग है-एक व्यक्ति उनके पास आया । अपने पिता की मृत्यु से वह शोक संतप्त था । उसने बुद्ध को प्रणाम कर निवेदन किया, भंते ! मेरे पिताजी ने अपने जीवन में कई कुकृत्य किये हैं, आप कोई ऐसा अनुष्ठान करें जिससे उनकी गति सुधर जाये, अपने किये कर्मों का क्रूर परिणाम उनको भोगना न पड़े। बुद्ध ने उस नादान व्यक्ति को समझाने के लिए कहा-पहले तुम कुछ कंकर लाओ फिर उनको घी के बर्तन में डाल दो। व्यक्ति खुश हुआ यह समझकर कि बुद्ध कोई अनुष्ठान कर रहे हैं। कार्य को सम्पन्न कर वह बुद्ध से पूछने लगा, भंते ! अब क्या करना है। उन कंकरो को बाहर निकालकर पानी से भरे बर्तन में डालने के लिए बुद्ध ने कहा। युवक ने आदेश का पालन किया। कंकर बर्तन के पेंदे तक चले गये
और घी ऊपर तेरने लगा। युवक असमंजस में था। पुनः बुद्ध से पछा- अब क्या करूँ भगवन् ? बुद्ध ने उससे कहा- अब इस घी को नीचे कर दो और कंकरों को पानी के ऊपर तेरादो। भगवन् यह तो असंभव है, व्यक्ति ने कहा। अब बुद्ध ने चुटकी लेते हुए उसे समझाया-अगर कंकर ऊपर नहीं तैर सकते और घी नीचे नहीं जा सकता तो तुम्हारे पिता की गति को मैं कैसे सुधार सकता हूं? जेसी
उनकी मति रहती थी वैसी ही गति होगी। तरुण-मान लीजिए एक व्यक्ति ने किसी जन्म में कोई बुरा कर्म कर लिया,
तो क्या किसी भी उपाय के द्वारा उस कर्म फल से बचा नहीं जा
सकता. अमरनाथ-कम की एक अवस्था है संक्रमण । समानजातीय कर्म प्रकृतियों का
अशुभ बन्धन शुभ रूप में बदल सकता है अगर व्यक्ति का सत्पुरुषार्थ हो। इसी तरह शुभ बन्धन अशुभ में परिवर्तित हो सकता है अगर व्यक्ति का पुरुषार्थ गलत हो। पर निकाचित बन्धन में हेर-फेर नहीं
होता है। अरुण-पर कर्म तो हमारी तरह चेतन नहीं पुदगल है, फिर वे व्यक्ति को
किस तरह प्रभावित करते हैं ? अमरनाथ-आत्मा जब अपने चिन्मय और शुद्ध स्वरूप में विराजमान हो
जायेगी तब इस पर जड़ कर्मों का कोई असर नहीं होगा। किन्तु जब तक संसारी अवस्था में है तब तक कर्मों का चेतन आत्मा पर असर
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