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बात-बात में बोष
था, जीवन कई बार युद्ध भी किये थे किन्तु भावना की प्रबलता न होने व तीन आसक्ति के अभाव के कारण निकाचित बन्धन बहुत कम हुआ, जो कर्म बंधे उनमें भी अधिकांश तप व संयम के कारण आत्म प्रदेशों में उदय आकर झड़ गये। भरत उसी जन्म में केवल ज्ञान पाकर
सिद्ध, बुद्ध व मुक्त बन गया। तरुण-किया हुआ कम कितने समय बाद में फल देता है ? अमरनाथ-इसकी कोई एक स्थिति नहीं। एक कर्म इसी जन्म में उदय
में आकर फल दे देता है तो किसी एक कम के फल देने में असंख्य वर्षों का काल भी बीत जाता है। ऐसी ही बात है जेसे-कोई बीज एक वर्ष में ही फल देने लग जाता है तो कोई बीज अनेक वर्षों बाद
में फल देता है। तरुण-किस कम का बन्धन कब हुआ और कब उसका फल मिला इसका
हिसाब कौन रखता है ? अमरनाथ-आत्मा की प्रवृत्ति के साथ ही कर्मों का बन्ध होता है।
निकाचित बन्धन होने पर कर्म निश्चित अवधि के बाद फल देकर स्वतः मड़ जाते हैं। दलिक बन्धन होने पर वे आत्म प्रदेशों में ही भोग लिये जाते हैं। कमों का हिसाब रखने वाला कोई दूसरा नहीं है। हमारी आत्मा ही उसका लेखा जोखा रखती है। उससे छिपा
हुआ कोई कर्म नहीं है। तरुण-पर हमको तो पता भी नहीं चलता कि कौन सा कर्म हमने किस जन्म
में किया। अमरनाथ-इसका पता तो परमज्ञानी को रहता है कि कौन सा कर्म किसने
और कब किया ? हम जेसों को तो इस जन्म की बात भी पूरी याद
नहीं रहती। तरुण-आपने बताया परमज्ञानी जानते है कि हमने किस जन्म में क्या कर्म
किया तो क्या वे हमें अपनी परमशक्ति से उनके कटु-फल से उबार
नहीं सकते या किये हुए असत् कर्मों को सुधार नहीं सकते ? अमरनाथ-ज्ञानी मात्र कम मुक्ति का रास्ता बता सकते हैं, उस पर चलना
व्यक्ति की अपनी इच्छा के अधीन है। वे उपदेश देते हैं, जबर्दस्ती किसी को पापकारी कार्यों से नहीं बचा सकते। उनका कथन हैव्यक्ति पापकारी प्रवृत्ति करने से पहले ही ध्यान रखे। पाप करते समय यदि ध्यान नहीं दिया फिर फल तो भोगना ही पड़ेगा। पत्थर अगर ऊपर की ओर फेका है तो वह निश्चित ही सिर पर गिरेगा।
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