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कर्मवाद
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कारण है-दर्शन या उसके अधिकारी का अनादर करना। वेदनीय कर्म दुःखरूप बन्ध का कारण है-प्राणियों को दुःख-देना और सुख रूप वेदनीय कर्म बन्ध का कारण है प्राणियों को दुःख न देना । मोहनीय कर्म बन्ध का कारण है-तीव्र, क्रोध, मान, माया, लोभ का प्रयोग करना । आयुष्य कम बन्ध चार प्रकार का होता है। उसके कारण हैं-१. नरक आयुष्य-पंचेन्द्रिय प्राणी की हत्या, मांसाहार आदि २. तियञ्च आयुष्य-कपट करना, कूट तोल माप करना आदि ३. मनुष्य आयुष्य-भद्र प्रकति का होना, दया के परिणाम रखना आदि ४. देव आयुध्य-त्याग, तपस्या आदि। नाम कर्म (शुभ रूप) बन्धन का कारण है - दूसरों को ठगने की मानसिक, वाचिक, शारीरिक चेष्टा न करना और नाम कर्म ( अशुभ रूप) का कारण है-ऐसी चेष्टा करना । गोत्र कम (उच्च) बन्धन का कारण है-जाति, कुल बल, रूप आदि का अभिमान न करना, गोत्र कम (निम्न ) बन्ध का कारण है। इनका अभिमान करना । अन्तराय कर्म बन्ध का कारण है-~दान, लाभ, भोग आदि में बाधा
डालना। तरुण-तो क्या बंधे हुए सभी कर्मों का फल आत्मा को अवश्यमेव भोगना
पड़ता है ? अमरनाथ-कर्म दो तरह के होते हैं (१) निकाचित कर्म (२) दलिक कर्म ।
निकाचित कर्म वे कहलाते हैं जिनका बंधन तीव आसक्ति व आवेश में होता है। इनका परिणाम अवश्यमेव भोगना पड़ता है। फल-भोग प्रकट रूप में सामने आने से, कर्मोदय की इस प्रक्रिया को विपाकोदय भी कहते हैं। उदाहरण के तौर पर, खन्धक मुनि ने पिछले जन्म में एक काचर को छीला था। अपनी कला की उन्होंने अत्यधिक प्रशंसा की। काम बहुत छोटा था पर भावना की प्रगाढता के कारण निकाचित कमों का बन्धन हो गया और उसी के परिणाम स्वरूप खन्धक मुनि की पूरी चमड़ी उतार ली गयी। दलिक कम वे होते है जिनकी स्थिति व रस को शुभ अध्यवसाय, त्याग, तपस्या, सत्पुरुषार्थ आदि के द्वारा कम किया जा सकता है या उनको समूल नष्ट भी किया जा सकता है। आन्तरिक रूप में कों को भोगने की प्रक्रिया को शास्त्रीय शैली में प्रदेशोदय कहते है यानी आत्म प्रदेशों में ही कर्मों को भोग लेना। उदाहरण के तौर पर भरत चक्रवर्ती छः खण्ड का राज्य करता था, विशाल सम्पदा का धनी
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