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कर्मवाद
तरुण-मैंने कभी उसका कुछ नहीं बिगाड़ा। अमरनाथ-यह भी संभव है कि इस जन्म में नहीं तो पिछले किसी जन्म में
तुमने उसका कुछ नुकसान किया हो। कर्म का भुगतान तो किसी न
किसी रूप में करना ही पड़ता है। तरुण-कर्म किस चीज का नाम है ? अमरनाथ-कर्म की व्याख्या बहुत विस्तृत है अगर तुम दोनों समझना चाहो
तो स्थिर होकर इसे समझने का प्रयास करो, मैं तुमको सरल ढंग से
समझाने की कोशिश करूंगा। तरुण-हम इस नये विषय को समझना चाहते हैं, आप अवश्य बतायें । अमरनाथ-जीव की प्रवृत्ति से आकृष्ट होकर जो पुद्गल आत्मा के साथ आ
चिपकते हैं और सुख-दुःख रूप फल देने में कारणभूत बनते हैं उनको
कम कहते हैं। अरुण-पुदगल से यहाँ क्या तात्पर्य है? अमरनाथ- यह जैन दर्शन का पारिभाषिक शब्द है। विज्ञान की भाषा में
इसे मेटर कहा जा सकता है। जुड़ना और टूटना इसका स्वभाव होता है । पाप युक्त आत्मा के साथ ये पुद्गल-द्रव्य उसी तरह चिपकते
है, जैसे गीले कपड़े पर रज कण । तरुण-पर ये दिखाई तो नहीं देते ? अमरनाथ-ये अति सूक्ष्म कण होते हैं, दृष्टि के विषय नहीं होते, न किसी
सूक्ष्म वीक्षण यन्त्र से भी इनको देखा जा सकता है। फिर भी ये रूपी अर्थात आकारवान पुद्गल हैं। इनका अस्तित्व संदेह से परे है व
शानियों द्वारा निरुपित है। अरुण-ये कर्म एक ही तरह के होते हैं या इनके भी कई प्रकार है ! अमरनाथ-स्वरूप की दृष्टि से ये पुदगल एक जैसे ही हैं पर आत्मा के आठ
मुख्य गुणों को ढकने के कारण इनके भी आठ प्रकार कर दिये गये। जेसे :१. आत्मा का पहला गुण है-ज्ञान । उसको रोकने वाले कर्म पुदगल ज्ञानावरणीय कर्म कहलाते हैं। २. दूसरे गुण दर्शन ( देखना ) को रोकने वाले दशनावरणीय कम कहलाते हैं। ३. तीसरे गुण अनन्त आनन्द को रोकने वाले वेदनीय कम कहलाते हैं। ४. चौथे गुण आत्मरमण से दूर भटकाने वाला मोहनीय कर्म कहलाता है । ५, पांचवें गुण शाश्वत स्थिरता को रोकने वाला आयुष्य कर्म कहलाता है। ६. छठे गुण निराकार अवस्था को रोकने वाला नाम कर्म कहलाता
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