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बात-बात में बोध तरुण-बस उससे जब तक बदला न ले लूं तब तक मेरा दर्द शान्त नहीं होने
का है। अमय-बहुत छोटी बात है । उसको तो मैं सीधा कर दूंगा। ऐसी तिकड़म
भिड़ाऊंगा कि उसके मित्र ही उसके दुश्मन बन जाएंगे। और उन्हीं के
हाथों उसकी पिटाई भी करवा दूगा। तरुण-ऐसा हो जाए तो और भी मजा आ जाए । न रहे बांस और न बजे
बांसुरी। अमरनाथ-तुम दोनों मित्र यह क्या सोच रहे हो। विचारो भी, तुम लोगों
का यह चिन्तन कहां तक उचित है ? अरुण-तरुण के पिता होकर आप क्या कह रहे हैं ? क्या किशोर क्षमा का
पात्र है ?
तरुण-ईट का जबाब पत्थर से देना चाहिए । अमरनाथ- तुम दोनों समझदार हो । ११ वीं कक्षा में पढ़ते हो। क्या किशोर
की तरह तुम भी गलती करने की नहीं सोच रहे हो? ऐसा करने
पर क्या उसके मन में आक्रोश नहीं जागेगा ? अरुण-आक्रोश सदा के लिए शान्त हो जाएगा। अमरनाथ-तुम्हारा दिमाग अभी परिपक्व नहीं है । मैं ठीक कह रहा हूँ, इससे
परस्पर मनमुटाव बढ़ेगा। झगड़े की एक ऐसी शृखला शुरू हो जाएगी
जिसका कभी अन्त नहीं होगा। तरुण-पिताजी! तो क्या कोई हमारे गाल पर तमाचा मारे उस समय हमें
पत्थर के बुत की तरह खड़े रहना चाहिए । अमरनाथ-प्रतिकार तुम भले ही करो पर प्रेम पूर्वक करो। यह नहीं कि तुम
सदा के लिए उसे दुश्मन बना लो। कहते है कि अमेरिका के राष्ट्रपति लिंकन अपने दुश्मनों के साथ भी प्रेम का व्यवहार करते थे। किसी ने उनसे कहा कि आप तो ऐसा करके दुश्मनों को बढ़ावा दे रहे हैं। उन्होंने उत्तर में बताया-मैं ऐसा करके दुश्मनों को बढ़ावा नहीं दे रहा हूँ बल्कि सदा-सदा के लिए उनको मिटा रहा हूँ। मेरे व्यवहार से वे दुश्मन ही कालान्तर में मेरे मित्र बन जाते हैं। यह है अहिंसात्मक प्रतिकार का तरीका । अभी जो घटना घटित हुई उसको तम एक ही दृष्टि से क्यों सोचते
हो । चिन्तन का दूसरा पक्ष भी तो है, जिससे तुम बिल्कुल बेखबर हो। अरुण--वह कौन-सा है ? अमरनाथ-यह घटना भी कोई न कोई प्रतिक्रिया हो सकती है। शायद तरुण
ने कभी उसका बिगाड़ किया है, उसी का बदला उसने लिया हो।
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