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________________ कर्मधाद अमरनाथ-फिर कौन सी पीड़ा है जिसने तुम्हारे मन को इतना बेचैन कर रखा है ? तरुण-एक लड़का है मेरी वेचैनी का कारण पिताजी ! वह मुझे दिन रात दातों में फूस की तरह खटकता है । नाम है उसका किशोर कुमार । उसी ने मुझे खेल के मैदान में धक्का दिया था। और उसी कारण मेरे सिर में तीन टांके लगे हैं। मैं चाहता हूँ जल्दी स्वस्थ होकर उससे बदला लू । अमरनाथ-ओह हो ! अब समझा तुम्हारी छटपटाहट का कारण । (एक क्षण रुककर) कितना नादान है मेरा बेटा। पांच दिन हो गये घटना को घटित हुए । अब भी सिर पर भार ढोए जा रहा है । तरुण-(गुस्से से जरा झल्लाकर) तो क्या आयी गई करद बात को। वह अपने मन में बड़ा बना फिरता है। कभी दांव लग गया तो सारा बड़प्पन मिट्टी में मिला दूंगा। (तरुण का मित्र अरुण उसी वक्त कमरे में प्रवेश करता है) अरुण-(अमरनाथ जी से) नमस्कार ! अमरनाथ-आओ अरुण, बैठो। तबीयत प्रसन्न है। अरुण-गुरु कृपा से सब ठीक है ! अमरनाथ-अभी धूप में आये हो। अरुण-तरुण से मिले हुए कई दिन हो गये, मिलना भी जरूरी था। इस वक्त बाजार से कुछ खरीदारी करनी थी, सोचा, लगते हाथ तरुण से भी मिल लू । अमरनाथ-अच्छा किया । कभी-कभी आ जाया करो ताकि यह भी बैठा-बैठा बोर न हो। अरुण-(तरुण से)-कहो मित्र ! कैसे है ? टांके सूखने शुरू हो गए होंगे। दर्द भी कम पड़ा होगा। तरुण-यह दर्द तो पहले की अपेक्षा कम है। टांके खुलने में शायद ४-५ दिन लग जायेंगे। लेकिन......... अरुण-लेकिन क्या ? तरुण-एक दूसरा दर्द मुझे रात-दिन सालता रहता है । अरुण-वह फिर क्या ! तरुण-तुम को तो पता ही है, उस किशोरकुमार ने ही मुझे खेल के मैदान में धक्का देकर गिराया था। अरुण-हां, हां। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003142
Book TitleBat Bat me Bodh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaymuni Shastri
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1995
Total Pages178
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Education
File Size8 MB
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