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ईश्वर-अकर्तृत्व
प्रतिमा बनने की क्षमता है, हर बीन में वृक्ष बनने की क्षमता है सिर्फ उपयुक्त माध्यम मिलना जरूरी है। इसी तरह हमारे में भी ईश्वर बनने की अर्हता है। जरूरत है साधना के द्वारा वैभाविक दुर्गणो को
मिटाने की। अनुपम-बड़ी भ्रान्ति दूर हुई। हमको तो यह बताया गया कि जैन धर्म
नास्तिक है। श्वर को मानता नही है, ईश्वर ने ही जगत को बनाया है, वही अच्छे बुरे कर्मों का फल देने वाला है। आज ही सही बोध
हुआ। विकास-पिताजी ! मैं भी जेन कुल में जन्म लेकर अपने दर्शन को भुला जा
रहा था। आपने यह चर्चा कर मेरी आँखे खोल दी। जवाहर-अच्छा हुआ, तुम दोनों को सही तथ्य समझने का मौका मिला ।
मेरी राय है कि तुम ईश्वर की उपासना करो पर स्वयं में ईश्वरीय गुणों को पैदा करने हेतु न कि ईश्वर की कृपा पाने। साथ ही अपने
पुरुषार्थ पर भरोसा रखो और फल को आकांक्षा को छोड़ दो। अनुपम-जैन साहब ! आपने मुझे सही दिशा-दर्शन दिया। आपका बहुत
बहुत आभार ।
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