SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 101
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ बात-बात में बोध कहकर मुझे समझाना चाहते हैं, पर आज का पढ़ा-लिखा मानस युक्तियों व तर्कों से प्रमाणित बात को ही सत्य मानता है । मुनिराज - महेन्द्र ! तर्क की शक्ति पर बहुत विश्वास नहीं करना चाहिए । सब जगह तर्क काम नहीं करता । एक छोटी-सी बात सुनाऊं। बच्चा स्कूल जाकर घर पर आया। गर्मी का मौसम था। रास्ते में तेज धूप थी । बच्चे का शरीर पसीने से तरबतर हो रहा था । उसने घर पहुँचते ही कपड़े उतार कर धूप में सुका दिये और खड़ा हो गया। मां ने आवाज लगायी - मूर्ख बेटे है उसने कहा - मां ! मैं पसीना सुका रहा हूं। कोई पसीना सूकता है कभी, मां ने कहा। बेटा तपाक से बोला, कपड़े का पसीना सूक सकता है तो शरीर का पसीना क्यों नहीं सूक सकता ? मां उसकी तर्क बुद्धि व नादानी पर हंसने लगी । स्वयं भी धूप में ! धूप में क्यों खड़ा अरे ! धूप में भी इस बात से तुम भी नमझ नहीं किया जा सकता । को सत्य भी साबित किया जा सकता है । गये होगे कि सब तथ्यों को तर्क से सिद्ध तर्क के द्वारा सत्य को असत्य और असत्य महेन्द्र पर आप तो सत्य को ही सत्य साबित करके दिखादें । मुनिराज - अगर तुम यही चाहते हो तो मैं तुम्हें तर्क से भी समझाने का प्रयास करूंगा। जहां तक आत्मा का प्रश्न है, नास्तिक भी इसे मानते हैं, किन्तु वे इसे कालिक नहीं मानते, केवल वर्तमान-कालीन और पंचभूतात्मक मानते हैं । आत्मा को यदि मानते हैं तो उसकी परम अवस्था परमात्मा को मानने में भी कठिनाई नहीं होनी चाहिए । सिर्फ पुनर्जन्म को लेकर ही आस्तिक और नास्तिक मान्यता में परस्पर विरोध है । यह विरोध भी समझ भेद का है । अगर तटस्थ बुद्धि से सोचा जाए तो यह विरोध भी दूर हो सकता है । महेन्द्र - आप मुझे समझाने का प्रयास करें । मैं तटस्थ होकर सुनूंगा और समझंगा <. मुनिराज - पुनर्जन्म की पुष्टि का सबसे पहला प्रमाण है - पूर्वजन्म की स्मृति । पूर्वजन्म की स्मृति भी प्रकार से उत्पन्न होती है । नैसर्गिक २. निमित्तजन्य | ज्ञान की निर्मलता के कारण बिना बाह्य निमित्त के पूर्व जन्म की स्मृति होने को नैसर्गिक कहा जाता है । उदाहरण के कपिल अपनी प्रेयसी की इच्छा तौर पर कपिल की घटना प्रसिद्ध है । पूरी करने के लिए दो माशा सोना लेने में उपस्थित हुआ । राजा की पूरी छूट देखकर कपिल की आकांक्षा राजा प्रसेनजित के दरबार ८८ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003142
Book TitleBat Bat me Bodh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaymuni Shastri
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1995
Total Pages178
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Education
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy