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________________ मूढ़ता ६५ जैन योग मेरी जीवन स्वस्थ अणुव्रत अहिंसा तत्त्व मेरी अमूर्त मूल का सिंचन मूल्यपरक शिक्षा : सिद्धान्त और प्रयोग मूल्य परिवर्तन : दिशाबोध मूल्यांकन के सापेक्ष दृष्टिकोण मृत्युजयी आचार्य भिक्षु मृदुता अनुप्रेक्षा मेरा अस्तित्व मेरी दृष्टि : मेरी सृष्टि १५४ or २४६ १३५ १२६ मैं कुछ मैं कुछ मैं कुछ मैं कुछ मैं कुछ १०२ १४८ १३० जीवन मैं आत्मानुशासन चाहता हूं मैं कुछ होना चाहता हूं मैं मनुष्य हूं (१) मैं मनुष्य हूं (२) मैं मानसिक संतुलन चाहता हूं मैं हूं अपने भाग्य का निर्माता मैत्री : क्यों ? मैत्री : जीवन के साथ मैत्री: बुढ़ापे के साथ मैत्री भावना मैत्री : रोग के साथ मैत्री : वर्तमान के साथ मैत्री : शक्ति का वरदान मोक्ष के साधक-बाधक तत्त्व मोक्ष धर्म का विशुद्ध रूप जीवन जीवन ६ अमूर्त जीवन जीवन मन का जैन दर्शन भिक्षु २०५ ४३६ ६७ मोह-व्यूह ३८ मौन की शक्ति शक्ति ११६ २२१ यंत्र, तंत्र और मंत्र यज्ञ और अहिंसक परम्पराएं यथार्थ का मूल्यांकन महा अतीत जैन धर्म गद्य साहित्य | ४६ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003141
Book TitleMahapragna Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDulahrajmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1988
Total Pages252
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size8 MB
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