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________________ ८६ चिन्तन के क्षितिज पर होता है । लड़-झगड़ कर भी तो अंततः समझौता ही होता है, शान्ति-वार्ता होती है । अहिंसा स्थापित करने के प्रयत्न हमें आशावान बनाते हैं। हम गहराई से खोजें। किनारे पर बैटकर समुद्र की गहराई का पता नहीं लगता । वहां तो सीप, कंकड़, घोंघे आदि ही हाथ लगेंगे। मोती उन्हें मिलते हैं जो गहरी डुबकी लगाते हैं । गहरे चिंतन से यह तत्त्व हाथ लगेगा कि मनुष्य ने सदैव अहिंसा को महत्त्व दिया है। बचाव का एक ही रास्ता मनुष्य शांति चाहता है । यही आशा की एक झलक है । वह शस्त्रास्त्र इकट्ठा करता है मगर कहता यही है कि शान्ति और सुरक्षा के लिए वह ऐसा कर रहा है। उसे भय है। किस बात का है वह भय । हिंसा का, विनाश का। कोई उस पर आक्रमण न कर दे । प्रतिरोधात्मक शक्ति चाहिए जिससे हिंसा टल सके। फिर चाहे किसी कारण से हो, भय से हो, है तो समझौते से जीने की बात । यही तो अहिंसा का कदम है। अहिंसा की वृत्ति काम कर रही है। अन्यथा हिंसा का एक कदम विनाश के लिए पर्याप्त है । इतने परमाणु अस्त्र-शस्त्र एकत्रित किए जा चुके हैं कि संसार को बीस बार खत्म किया जा सकता है । मगर सब जानते हैं कि अहिंसा से ही बचाव संभव है। एक ही रास्ता है यह । मैत्री भाव को विकसित करें। एक-दूसरे राष्ट्र के अस्तित्व को स्वीकार करें। हर मन में मैत्री अंकुरित हो तो बचाव संभव है। विश्वास उत्पन्न होगा तो विनाश के साधन अधिक नहीं बनेंगे और जो है उनमें से कम किए जा सकेंगे। मन पवित्र हो आइंस्टीन ने कहा था कि चौथा विश्व युद्ध तो पत्थरों और लाठियों से ही लड़ा जाएगा। तीसरे युद्ध में सब कुछ नष्ट हो जाएगा। कोई अगर कंदराओं में छुपकर बच गए तो उनके पास कोई अस्त्र-शस्त्र शेष न रहेंगे। हिंसा के परिणाम को इससे आंका जा सकता है। मानव मानव को समझना होगा कि दूसरे को बुरा कहकर मैं ऊंचा नहीं बन सकूँगा । दूसरे को समान मानने वाली बात अहिंसा से ही आएगी। महावीर ने कहा-'मित्ती मे सव्व भूएस, वैरं मजसं न केणई'। सब जीवों से मित्रता, किसी से भी वैर नहीं। यह निर्वैर भावना मात्र वाणी की बात न हो। वाणी की बात मात्र अभिनय होगी। मन की बात कर्म से होगी। मन पवित्र हो, करुणामय हो। अध्यात्म को ऊंचाई : संसार का अस्तित्व सर्वनाश की तैयारियां करते विश्व को महावीर का संदेश आज भी सही मार्ग Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003140
Book TitleChintan ke Kshitij Par
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBuddhmalmuni
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year1992
Total Pages228
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size9 MB
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